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________________ तत्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग — मातंग हरिकेश बल : मातंग जातक ૪૨ संयमिन् ! कृपया श्राख्यान करें - बतलाएँ, कुशल पुरुषों ने -तत्त्वज्ञों ने श्रेष्ठ यज्ञ का प्रतिपादन किस प्रकार किया है ?" मुनि ने कहा- "छः प्रकार के प्राणियों की जो हिंसा नहीं करते, असत्य नहीं बोलते, चोरी नहीं करते, परिग्रह नहीं रखते, स्त्री, मान, माया आदि को परिहेय समझ कर जो त्याग देते हैं, जो पाँच प्रकार से संवृत - आत्मोन्मुख होते हैं, असंयममय जीवन की कक्षा नहीं करते, जो त्यागमय भावना से अनुभावित होते हैं, जिनकी देह के प्रति ममता नहीं होती, ऐसे सत्पुरुष श्रेष्ठ यज्ञ का अनुष्ठान करते हैं ।" ब्राह्मणों ने पूछा- “भिक्षुवर ! आपके अनुसार ज्योति — प्रग्नि कौन-सी है ? ज्योति स्थान अग्नि कुण्ड कौन-सा है ? स्रवा - अग्नि में घृत होमने की कुड़छी, कण्डे और समिधा - यज्ञाग्नि प्रज्वलित करने की लकड़ियाँ कौन-सी हैं ? शान्तिपाठ क्या है तथा किस प्रकार आप अग्नि में हवन करते हैं ?" मुनि ने कहा - " तप अग्नि है, जीव अग्नि-स्थान या हवन कुण्ड है । शुभ मन-योग, शुभ वचन-योग तथा शुभ काय-योग अर्थात् मानसिक, वाचिक एवं कायिक शुभ व्यापार स्वा है । शरीर कण्डे हैं । आठ कर्म समिधा है । संयमाचरण शान्ति पाठ है । मैं ऐसे यज्ञ का अनुष्ठान करता हूँ, ऐसी प्रग्नि में हवन करता हूँ। जो मुनिवृन्द द्वारा प्रशंसित - अनुमोदित है । " ब्राह्मणों ने पूछा - "यक्षाचित मुने ! आपका कौन-सा जलाशय है ? कौन-सा शान्तितीर्थ है ? मैल दूर करने के लिए, स्वच्छता के लिए प्राप कहाँ स्नान करते हैं ?" मुनि बोले - " आत्मोल्लास कर, निर्मल, शुभ लेश्यामय धर्म जलाशय है । ब्रह्मचर्यं शान्ति-तीर्थ है । उनमें स्नान कर मैं मल-रहित, विशुद्ध तथा सुशीतल होकर दोषों कोपापों को दूर करता हूँ । तत्वज्ञानी जनों ने इस स्नान को समझा है। यह महान् स्नान है। ऋषियों ने इसकी प्रशंसा की है । यह वह स्नान है, जिसे संपन्न कर महर्षिवृन्द निर्मल तथा अत्यन्त शुद्ध होकर सर्वोत्तम अधिष्ठान - मोक्ष को प्राप्त हुए । प्राधार - उत्तराध्ययन सूत्र बारहवाँ अध्ययन चूर्णि वृत्ति । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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