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तत्त्व : आचार : कथानुयोग]
एक अवलोकन
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मानवीय संवेदनाओं के साथ उनकी भाषा में बात करते हैं। एक स्पष्ट कालपनिकता वहाँ है, किन्तु लोग उन्हें बहुत ही चाव और रुचि से पढ़ते हैं। पात्र काल्पनिक हैं तो क्या हुआ, आखिर आदर्श तो सत्यपरक हैं और जैसा कहा गया, वे साधारणीकरण का तत्त्व अपने में विशेष रूप लिये रहते हैं । अत: कथात्मक साहित्य का अनन्यसाधारण महत्त्व है।
प्रस्तुत ग्रन्थ का दूसरा भाग जो बौद्ध एवं जैन वाङ्मय की कथाओं के तुलनात्मक प्रस्तुतीकरण के रूप में है, अध्येत जन के लिए, शोधाथियों के लिये, अत्यंत उपयोगिता लिये हुए है । मुनिवर्य ने अनेक दुर्लभ कथानकों को अनेकानेक ग्रन्थों से खोजपूर्वक आकलित करने में जो श्रम किया है, वह साधारण नहीं है । वे वास्तव में साधुवादाह हैं । इस ग्रन्थ का सपादन देश के ख्यातनामा विद्वान, प्राच्य भाषाओं । वं दर्शनों के गहन अध्येता, समर्थ लेखक, प्रबुद्ध चिंतक डॉ० छगनलाल जी शास्त्री ने किया है। डॉ. छगनलाल जी शास्त्री देश के उन गिने चुने विद्ववानों में हैं, जिनके लिये विद्या, व्यवसाय नहीं, एक आध्यात्मिक व्यसन है। डॉ० शास्त्री जी के जीवन का चार दशक से अधिक समय पूर्णत: सारस्वत-आराधना में ही व्यतीत हुआ है। ऐसे उच्च कोटि के ग्रन्थ का, डॉ. छगनलाल जी जैसे योग्य विद्वान् द्वारा सम्पादित होना उसकी गरिमा के सर्वथा अनुरूप है ।
यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि प्राकृत और पालि का प्राचीनतम वाङ्मय, अनेक दृष्टियों से अपना असामान्य वैशिष्ट्य लिये हुए है। उसमें इस महान् राष्ट्र के सार्वजनीक जीवन का जो सजीव चित्रण हमें प्राप्त है, वह अन्यत्र नहीं मिल सकता। विश्वमानव के सांस्कृतिक विकास की पुराकालीन पर्तों को खोजने के सत् प्रयास, साथ ही साथ दुःसाध्य प्रयास में संलग्न सरस्वती पुत्रों के लिये ऐसे ग्रन्थ बड़े मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं । प्राच्य विद्या क्षेत्र में उद्यमशील मनीषी, भारतीय विद्या के संदर्भ में अनुसंधानरत शोधार्थी तत्वजिज्ञासु अध्ययनार्थी एवं बोधेप्सु पाठकों के लिये यह ग्रन्थ वस्तुत: बहुत उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसी आशा है। अवस्था का वार्धक्य, मुनि श्री नगराजी म० के कर्मयोग को दुर्बल न बनाकर अधिक वर्धनशील ही बना पाया है, यह आश्चर्य की बात है। हमारा यह आश्चर्य कभी-क्षीण न हो यथावत् बना रहे और उनके ज्ञानप्रवण कर्मयोग के सातव्य से उनके साहित्य का वहवृक्ष उत्तरोत्तर बढ़ता जाए, फैलता जाए, जिसकी सघन, शीतल छाया में तत्त्वबोधार्थी जन विश्राम ले सकें, शांति पा सकें। पुन: अनेकानेक वर्धापनपूर्ण शुभाशंसाओं के साथ।
-उपाध्याय विशाल मुनि
जैन बोडिंग हाउस 3, मेडली रोड मांबलय, मद्रास-17 दि० 7-10-90
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