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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
मुनि को देखकर वे बोले - "अरे ! फटे-पुराने चिथड़ों वाले, प्रेत जैसे तुम कौन हो ? यहाँ क्यों आये हो ? यहाँ से निकल जाओ ।"
तिन्दुक वृक्ष पर रहने वाला यक्ष, जो उन महामुनि के प्रति अनुकंपाशील - श्रद्धाशील एवं सेवारत था, मुनि में अपना शरीर अधिष्ठित कर अदृश्य रूप में कहने लगा"मैं श्रमण, संयमी, ब्रह्मचारी और धन तथा परिग्रह से विरत हूँ, पचन- पाचन से निवृत्त हूँ, दूसरों द्वारा अपने लिये पकाये गये भोजन में से कुछ लेने हेतु इस मिक्षा-वेला में आया है । यहाँ प्रचुर मात्रा में खाद्य पदार्थ बांटे जा रहे हैं, खाये जा रहे हैं, भोगे जा रहे हैं । तुम लोग जानते हो, मैं याचन- जीबी - मिक्षा से जीवन-निर्वाह करने वाला हूँ । इसलिए मुझे बचाखुचा कुछ आहार दो ।"
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उत्तम क्षेत्र
ब्राह्मणों ने कहा - "उत्तम विधिपूर्वक भलीभाँति पकाया गया यह भोजन हमारे लिए— ब्राह्मणों के लिए ही है। इस भोजन में से हम तुम्हें नहीं देंगे। तुम यहाँ क्यों खड़े हो ? चले जाओ ।"
मुनि अधिष्ठित यक्ष बोला -- "जिस प्रकार कृषक फसल की आशा से ऊँची-नीची भूमि में बीज बोते हैं, उसी प्रकार तुम लोग भी मुझे श्रद्धापूर्वक भिक्षा दो । उर्वर भूमि में बोये गये बीज की तरह यह तुम लोगों को निश्चय ही पुण्यमय फल देगी।"
ब्राह्मणों ने कहा - "हमे लोक में वे क्षेत्र विदित हैं, जहाँ डाले हुए बीज निपजते हैं, उत्तम फल देते हैं। वास्तव में उत्तम जाति एवं विद्या से समुपेत ब्राह्मण ही सुपेशल - सुश्रेष्ठ उत्तम क्षेत्र हैं ।"
यक्ष ने कहा- "जो क्रोध, अभिमान, हिंसा, असत्य, चौर्य तथा परिग्रह से नहीं छूटे हैं, वे ब्राह्मण न उच्च जातीय हैं और न विद्वान् ही है । वे तो पापापूर्ण क्षेत्र हैं । तुम केवल शब्दों का भार ढ़ांते हो। तुमने वेदों का अध्ययन किया है, पर उनका अर्थ नहीं जाना । जा मुनि उच्च- अवच-बड़े छोटे -- सभी कुलों से मिक्षा लेते हैं, वही दान के लिए श्रेष्ठ क्षेत्र है।"
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उपर्युक्त कथन सुनकर ब्राह्मण पंडितों के छात्रों ने कहा - "तुम हमारे समक्ष हमारे अध्यापकों के प्रतिकूल क्या बक रहे हो ? अरे निर्ग्रन्थ ! यह अन्न जल - आहार पानी नष्ट भले हो जाए पर हम तुम्हें नहीं देंगे ।"
यक्ष ने कहा-"मुझ जैसे समितियुक्त --- गति, भाषा, भिक्षाचर्या इत्यादि दैनन्दिन क्रिया प्रक्रिया में संयताचारी, गुप्तियुक्त - मन, वचन तथा देह सम्बन्धी असत् प्रवृत्तियों के निरोधक, सुसमाहित-सम्यक् साधना निरत, जितेन्द्रिय पुरुष को यह निर्दोष आहार पानी नहीं दोगे तो तुम्हें इन यज्ञों का क्या फल मिलेगा ।"
यह सुनकर यज्ञधिकृत अध्यापक ने कहा - अरे ! यहाँ कोई क्षत्रिय, उपयोजितयज्ञ रक्षार्थ नियुक्त पुरुष, अध्यापक या छात्र नहीं हैं, जो इस भिक्षु को डंडो से मुष्टि प्रहार से — मुक्कों से मारकर, इसका गला पकड़ कर इसे वहाँ से बाहर निकाल दें " ब्राह्मण कुमारों द्वारा उत्पात : भद्रा द्वारा शिक्षा
अध्यापक का वचन सुनकर बहुत से ब्राह्मण कुमार दौड़कर वहाँ आये और डंडों,
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