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आगक और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
सोमदेव नामक पुरोहित का भवन था। सोमदेव भवन के झरोखे में बैठा था। मुनि शंख ने उससे नगर में जाने का मार्ग पूछा। सोमदेव ने सोचा, अच्छा होगा, मैं साधु को हुतवह नामक मार्ग से जाने के लिए कहूँ। यदि वह उस मार्ग से होता हुआ जायेगा तो उसके पाँव अत्यन्त परितप्त होंगे। मैं उसे सन्ताप पाते देखने का मजा लूंगा। इस अभिप्राय से सोमदेव ने मुनि शंख को उसी अत्यन्त उष्णतायुक्त मार्ग से जाने को कहा।
____ मुनि शंख, जैसा पुरोहित सोमदेव ने बतलाया, उसी मार्ग से चल पड़े। एक आश्चर्य घटित हुआ। मुनि शंख के तपोमय व्यक्तित्व के प्रभाव से उस मार्ग की उष्णता दूर हो गई। उष्णता शीतलता में परिणत हो गई। मुनि शंख उस मार्ग से आगे बढ़ने लगे।
तप का प्रभाव
सोमदेव पुरोहित ने जब मुनि को प्रसन्नतापूर्वक आगे बढ़ते हुए देखा तो उसे बड़ा अचरज हुआ। वह तत्काल नीचे आया तथा स्वयं भी उस मार्ग स नंगे पैर चला । उसको वह मार्ग सर्वथा शीतल प्रतीत हुआ। सोमदेव ने झट समझ लिया कि यह मुनिवर के तपोमय जीवन का प्रभाव है। वह अनुभव करने लगा कि जो कुछ उसने किया, वह बहुत बड़ा पाप था। उसने मनिवर्य को अत्यन्त भीषण कष्ट में डालने हेत हतवह मार्ग से जाने का संकेत कर बहुत बुरा किया। इसलिए उसने मन-ही-मन सोचा- यदि मैं इस मुनि का शिष्यत्व स्वीकार कर लूं तो बड़ा अच्छा हो, मेरा दोष-निवारण हो जाए, कोई प्रायश्चित न करना पड़े; अन्यथा मैं बहुत बड़े प्रायश्चित का भागी हो जाऊंगा। यह सोचकर सोमदेव शंख मुनि के पास गया । उनके चरणों में गिर पड़ा। अपनी मन:स्थिति से उन्हें अवगत कराया। मुनि ने उसे आश्वस्त किया, धर्मोपदेश दिया। सोमदेव के मन में वैराग्य-भाव जगा। उसने नि से प्रव्रज्या स्वीकार की।
जाति-मद
सोमदेव भलीभाँति संयम का पालन करने लगा, किन्तु, उसे मन-ही-मन इस बात का गर्व था कि वह ब्राह्मण है, उत्तमकुलोत्पन्न है, उत्तम जाति-युक्त है। यही उसकी साधना में एक कमी थी, जो परमार्थ को यथावत् रूप में न जान लेने का कारण थी। यथासमय अपना आयुष्य पूरा कर वह देवलोक में देव के रूप में उत्पन्न हुआ। देवलोक में बहुत समय तक स्वगिक सुखों का उपभोग किया। वहाँ का अपना आयुष्य पूर्ण कर वह गंगा के तट पर विद्यमान बलकोष्ठ नामक स्थान में हरिकेश नामक चांडाल की गौरी नामक पत्नी के गर्म में आया। उसकी मां ने स्वप्न में एक विशाल आम्र-वृक्ष देखा, जो फलों से लदा था। स्वप्न-शास्त्र वेत्ताओं से स्वप्न का फल पूछा। उन्होंने स्वप्न का फल बताते हुए कहा कि तुम्हारे एक अत्यन्त योग्य, पुण्यात्मा पुत्र होगा।
चाण्डाल-कुल में जन्म
गर्भ-काल पूर्ण होने पर गौरी ने एक पुत्र को जन्म दिया। चाण्डाल कुल में जन्म लेना उसके पूर्व-जन्म के जातिमद का परिणाम था । जन्मना चाण्डाल होने के साथ-साथ वह
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