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________________ तत्त्व : आचार : कथानु योग] कथानु योग --मातंग हरिकेश बल : मातग जातक १४१ १. मातंग हरिकेश बल : मातंग जातक उत्तराध्ययन सूत्र के बारहवें अध्ययन में चाण्डाल-कुलोत्पन्न हरिकेश बल का वर्णन है, जो परम तपस्वी थे। सुखबोधा टीका में उनके पूर्व भव तथा वर्तमान जीवन के सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन है। हरिकेश बल मुनि इस कथानक के मुख्य पात्र हैं। उनके अतिरिक्त राजकुमारी भद्रा, यज्ञवादी ब्राह्मण, मुनि की सेवा करने वाला यक्ष-ये पात्र और हैं। जाति-मद का परिहार, सच्चा ब्राह्मणत्व, सत्पुरुषों के तिरस्कार का फल, साधुचंता पुरुषों के तितिक्षामय पवित्र जीवन आदि का प्रस्तुत कथानक में जो विवेचन हुआ है, वह निश्चय ही मननीय है। __ लगभग ऐसा ही वृत्तान्त मातंग जातक में है। बोधिसत्त्व चाण्डाल के घर जन्म लेते हैं। भद्रा की ज्यों यहाँ भी दिठ्ठमंगलिका नामक एक नारी पात्र है। भद्रा ने जिस प्रकार मुनि की अवहेलना की, दिठ्ठमंगलिका ने भी उसी प्रकार बोधिसत्त्व का अनादर किया। अपनी भूल का फल उसने झेला। उत्तराध्ययन में ब्राह्मणों द्वारा मुनि के अपमान किये जाने का कथन है, वैसे ही मातंग जातक में ब्राह्मणों द्वारा बोधिसत्त्व का अपमान किया जाता है। दोनों ही स्थानों पर ब्राह्मण यक्षों द्वारा दण्डित होते हैं । फिर दोष-मार्जन होता है। जैन तथा बौद्ध-परंपरा के ये दोनों कथानक विचार-वैशिष्ट्य की दृष्टि से अनेक मुद्दों पर लगभग मिलते हैं, जिससे श्रमण-संस्कृति की इन दोनों धाराओं के समन्वयात्मक चिन्तन का पता चलता है। मातंग हरिकेश बल शंख द्वारा प्रव्रज्या एक समय मथ रा नगरी में शंख नामक राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापशाली था। उसके मन में सांसारिक भोग-वासना से विरक्ति हो गई । उसने संयम का पथ स्वीकार किया। कुछ ही समय में वह संस्कार तथा अभ्यासवश बहुश्रुत हो गया । जो कभी शंख नामक राजा था, अब वह शंख नामक मुनि के रूप में भूमंडल में पर्यटन करने लगा। पर्यटन करते-करते वह एक बार हस्तिनापुर के समीप आया। हस्तिनापुर में प्रवेशार्थ एक बहुत ही भय-जनक तथा अत्यधिक उष्णता-युक्त मार्ग था। वह इतना उष्ण था कि ग्रीष्म ऋतु में तो किसी भी मनुष्य के लिए उसे नंगे पैर पार करना दुःशक्य था। यही कारण था कि उस मार्ग को लोग हुतवह-अग्नि के नाम से पुकारते थे। सोमदेव पुरोहित मुनि शंख ने भिक्षा हेतु नगर में जाने को सोचा । वे उस ओर रवाना हुए। मार्ग में Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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