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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :३
किए हों, और दोनों के ही बहुश्रुत शिष्यों ने अपने-अपने ढंग से अपने शास्त्रों में उन्हें आकलित किया हो। जैनीकरण व बौद्धीकरण की प्रमुखता तो ऐसी स्थिति में होती ही है । जैसे प्रदेशी राजा को आगम-साहित्य केशीकुमार श्रमण क! सान्निध्य प्रदान ३.२ वाते है और बाद में उसे निर्ग्रन्थ धर्म का अनुयायी व्यक्त करते हैं, उसी प्रकार त्रिपिटक साहित्य उसी नास्तिक प्रदेशी राजा को श्रमण कमार काश्यप का सान्निध्य प्रदान करवाते हैं और बाद में उसे बौद्धधर्म का अनुयायी अभिव्यक्त करते हैं। अस्तु, उक्त प्रकरणों की समानता के पीछे कुछ भी कारण रहे हों, पर, इतना तो दोनों परम्पराओं के साहित्य में यथा-प्रसंग अभिहित है ही कि भगवान् महावीर के परिवार और भगवान् बुद्ध के परिवार पर कुछ कम-अधिक भगवान् पार्श्व के चातुर्याम-धर्म का प्रभाव था, जिसका सप्रमाण सम्मुलेख प्रथम खण्ड में हो चुका है।
प्रस्तुत घटना-प्रसंगों में वे सब घटना-प्रसंग नहीं लिए जाएंगे, जिन पर प्रथम-ख (इतिहास और परम्परा) में विस्तार से समीक्षा की जा चुकी है । जैसे, श्रेणिक-बिम्बसार, अजातशत्र कणिक, राजा उदायन, अभय कुमार आदि। ये सब भगवान महावीर के समसामयिक व दोनों से संपक्त हैं। यहां तक बूद्धबल से विख्यात राजा श्रेणिक के राजकुमार अभयकुमार और सिन्धूसौवीर के राजा उदायन तो आगम साहित्य के अनसार भगवान महावीर के पास तथा विपिटि क-साहित्य में भगवान बुद्ध के पास भिक्ष-दीक्षा ग्रहण करते हैं।
आगम-साहित्य व त्रिपिटक-साहित्य की समीक्षा करने पर अनुत्तरित जैसा तो एक ही प्रश्न रहता है कि समग्र त्रिपिटक साहित्य में नाम तो निगण्ठनात पुत्त' का आता है और उनका धर्म चातुर्याम बताया जाता है जबकि चातुर्याम धर्म भगवान् पार्श्व का था। त्रिपिटक-साहित्य बुद्ध-निर्वाण के पांच सौ वर्षों बाद लिखा गया था। भगवान् महावीर (निगण्ठ नातपुत्त) ने अपना धर्म ‘पंच महाव्रत' घोषित कर दिया था। पता नहीं भिक्ष-संघ में यह भूल तब तक भी कैसे पलती रही। हाँ, केवल आत्म-संतोष के लिए हम सोच सकते हैं कि भगवान महावीर द्वारा समर्थित चातुर्याम धर्म की धारणा चलती रही हो । वैसे भगवान बुद्ध ने भी पंचशील रूप धर्म निरूपित किया, जिसमें चार तो अहिंसा आदि वही महाव्रत तथा पांचवां 'मज्जं न पातव्वं' अर्थात् मद्य न पीना। अस्तु, यह सब विद्वानों के लिए चिन्तन-मनन का विषय तो रह ही जाता है कि त्रिपिटक साहित्य में आखिर तक यह कैसे चलता रहा कि धर्म चातुर्याम और प्रवक्ता निगष्ठ नातपुत्त अर्थात् भगवान् महावीर।
प्रस्तुत कथानुयोग' प्रकरण में दोनों परम्पराओं के वर्णन संलग्न दिए जाएंगे तथा प्रारम्भ में एक संक्षिप्त परिचायिका । अस्तु, विज्ञ पाठकों व शोध-गवेषकों के लिए पूर्ण तृप्ति का विषय तो दोनों ही आख्यानों का समग्र अध्ययन ही हो सकेगा।
१. आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, खण्ड-१, पृ० २, बुद्ध की साधना पर
निम्रन्थ प्रभाव। २. आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, सण्ड-१, पृ० ३१५
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