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कथानुयोग
घटित घटना-प्रसंगों एवं कल्पित कथा-प्रसंगों का जैन, बौद्ध एवं वैदिक आदि सभी परम्पराओं में बाहुल्य है। इस 'कथानुयोग' प्रकरण के लेखन का उद्देश्य मुख्यतः जैन व बौद्ध इन दो धाराओं के संगम पर आधारित है; अत: पहले ऐसे घटना-प्रसंगों एवं कथा-प्रसंगों को लिया जा रहा है, जो केवल दो ही परम्पराओं में समान भाव, भाषा, शैली व घटनाप्रसंगों के साथ उपलब्ध होते हैं। जैसे-मातंग हरिकेश बल : मातंग जातक, राजा प्रदेशी: पायासी राजन्य, चित्त और संभूतः चित्त संभूत जातक, विजय-विजया : भद्रा-पिपलीकुमार, चार प्रत्येक बुद्ध आदि । अब तक जो मैं सूचीबद्ध कर पाया हूँ, ऐसे कथा-साम्य, भावसाम्य व कहीं-कहीं पर नाम-साम्य घटना-प्रसंगों की संख्या लगभग तेईस तक पहुँच जाती है। इन सबकी खोज-पड़ताल के लिए दोनों ही परम्पराओं के साहित्य का प्रचुर आलोडनविलोडन करना अपेक्षित है। शास्त्रीय घटना-प्रसंगों से लोक-कथाओं तक का यह आकलन अपने आप में अपूर्व ही होगा। 'आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन', प्रथम-खण्ड में पं० सुखलालजी व श्री दलसुखभाई मालवणिया ने उस प्रकरण को अपूर्व माना, जिसमें त्रिपिटक साहित्य से 'चातुर्याम धर्म' तथा 'निगण्ठ नातपुत्त' के समुल्लेख वाले समग्र प्रसंग एकत्र कर लिए गये थे। उसी धारा के दूसरे खण्ड में यह अपूर्व विशेषता मानी गई कि उसमें प्राकृत व पालि भाषाओं का आज के भाषा-विज्ञान के सन्दर्भ में विवेचन किया गया है। अस्तु, मैं चाहता हूँ कि प्रस्तुत तीसरे खण्ड की यह अपूर्ण विशेषता हो कि दोनों परम्पराओं के समान घटना-प्रसंग व कथा-प्रसंग तुलनात्मक विवेचन के साथ प्रस्तुत कर सकू। भावी शोध-विद्वानों के लिए यह एक पृष्ठ-भूमि होगी, जिसके माध्यम से वे उसी धारा को और विस्तृत व समीक्षित कर सकते हैं।
श्रीकृष्ण वासुदेव जैसे कतिपय प्रसंग इस प्रकरण में सविस्तार संकलित किए जाएंगे, जो जैन, बौद्ध व वैदिक ; इन तीनों ही धाराओं में उपलब्ध होते हैं। उन प्रकरणों में तीनों परम्पराओं का अलगाव भी स्पष्ट बोलता है, पर, पात्रों की नाम-साम्यता तथा कथा-वस्तु की पथक्ता भी एक रोचकता तथा गवेषणा का विषय होगा।
जैन एवं बौद्ध-प्रकरणों की समानता का जहाँ तक प्रसंग है, इस सन्दर्भ में मैं अपने प्रथम-खण्ड में ही उल्लेख कर चुका हूँ कि इसका कारण एकमात्र यही हो सकता है कि जैन धर्म के तेईसवें तीर्थं कर भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का प्रभाव भगवान् महावीर व भगवान् बद्ध दोनों पर हो रहा है। इस अनुश्रुति से वे भास्थान दोनों महापुरुषों ने भाल्यास
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