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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड: ३
कार्य करे।
कोसिय जातक : सम्बद्ध घटना
वाराणसी-नरेश ने असमय में नगर से निकल कर-प्रस्थान कर बाहर पड़ाव डाला। पड़ाव के सामने बाँसों का एक झुरमुट था । उस झुरमुट में एक उल्लू छिपा था। बहुत से कौए वहाँ आ गए। उन्होंने उस स्थान को, जहाँ उल्लू था, घेर लिया । बचाव के लिए उल्लू को चाहिए था कि वह सूर्यास्त तक बाहर नहीं निकलता, क्योंकि दिन में उसे सूझता नहीं, रात को ही सूझता है । उल्लू दर्पोद्धत था। बांसों के झुरमुट से बाहर निकल आया।
कौए उल्लू पर टूट पड़े। दिवान्ध-सूर्य की विद्यमानता में दृष्टिहीन उल्लू कुछ भी न सूझ सकने के कारण उनका जरा भी प्रतिकार नहीं कर सका। कौओं ने उसे चोंचों से मार-मार निष्प्राण कर दिया।
वारणसी नरेश ने यह देखा। उसने बोधिसत्त्व को बुलाया और उनसे पूछा-कौओं ने (जो उल्लू का शिकार है) उल्लू को कैसे मार गिराया ?
बोधिसत्त्व ने कहा-'अपने स्थान से समय पर निकलना-बाहर आना श्रेयस्कर है, असमय में निकलना श्रेयस्कर नहीं है । असमय में निकलने से कोई लाभ नहीं होता, प्रत्युत्तर हानि होती है। अनुकूल अवसर देख एकाकी को बहुजन-बहुसंख्यक - उससे छोटे और कमजोर भी मार गिराते हैं। यही कारण है, कौओं ने उल्लू को मार गिराया।"२
अर्णव : सागर के पार
शास्त्रों में संसार को सागर से उपमित किया गया है। वह सागर की ज्यों दुष्पार है। उसे सर्वथा पार कर जाना, उससे छूट लाना-आवागमन से मुक्त हो जाना बड़े आत्मबल तथा पुरुषार्थ का कार्य है। जैन तथा बौद्ध शास्त्रों में संसार का सागर के रूप में अनेक स्थानों पर आख्यान हुआ है। निम्नांकित प्रसंगों से वह प्रकट है।
श्रमण भगवान् महावीर ने गौतम से कहा- "गौतम ! तुम संसार रूपी महान् अर्णव को-विशाल सागर को तीर्ण कर चुके हो-तैर चुके हो, पार कर चुके हो, अब तट पर आकर क्यों ठिठक गये ? गोतम ! क्षण भर प्रमाद मत करो, अप्रमाद का अवलंबन लिये
१. कालेण णिक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जित्ता, काले कालं समायरे ।
-दशवैकालिक सूत्र ५.२०४ २. काले निक्खमणा साधु, नाकाले साधु निक्खमो। अकालेन हि निक्खम्म, एककम्पि बहूजनो। न किञ्चि अत्थं जोतेति, धकसेना व कोसियं ॥
-कोसिय जातक २२६
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