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________________ ११४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ अधोलोक एवं तिर्यग्लोकवर्ती सभी प्राणियों के साथ मेरा बिलकुल वैर न रहे, वाधाजनक व्यवहार न रहे। संसार के किसी भी प्राणी के प्रति मेरा वैर-शत्रु-भाव न हो, सबके साथ मैत्री हो। संसार के सभी प्राणी परस्पर अवैरी–निर्वैर हों-वे आपस में शत्रु-भाव न रखें। भावनाएं जीवन का प्रासाद भावनाओं की पृष्ठिभूमि पर टिका है। सात्त्विक, प्रशस्त, मृदुल तथा कोमल भावनाएँ जीवन के कर्म-पक्ष में पवित्रता का तथा दैनन्दिन व्यवहार में करुणा, वात्सल्य एवं समता का संचार करती हैं। जैन तथा बौद्ध दोनों परंपराओं में भावनाओं पर बड़ा सुन्दर विश्लेषण किया गया है। मैत्री, प्रमोद, कारुण्य तथा माध्यस्थ्य-ये चार भावनाएँ हैं, जिनका विश्लेषण इस प्रकार है १. मैत्री-संसार के सभी सत्त्वों-प्राणियों के प्रति मित्र-भाव रखना, उन्हें मित्रवत् समझना। किसी के भी साथ शत्रुता न रखना। २. प्रमोद-गुणी-जनों के प्रति प्रमोद का भाव रखना, गुणाधिक पुरुषों को देखकर मन में प्रमुदित होना, हर्षित होना। ३. कारुण्य-दुःखाकान्त, संकटग्रस्त जनों के प्रति करुणा-भाव रखना, उनके प्रति मन में दयाशील रहना। ४. माध्यस्थ्य-अविनयों-अयोग्य जनों के प्रति मध्यस्थता का भाव रखना, तटस्थ रहना। मैत्री, उपेक्षा, करुणा, विमुक्ति और मुदिता- इन भावनाओं का आसेवन करता हुआ— इनसे अनुभावित–अनुप्राणित होता हुआ, जगत् में किसी के साथ विरोध न रखता हुआ साधक खड्गविषाण-गेंडे की ज्यों एकाकी विचरण करे । । भगवान् तथागत ने अपने शिष्यों से कहा-"भिक्षुओ ! यदि मन में क्रोध का उदय हो, क्षुब्धता आए तो पाँच प्रकार से उसे अपगत किया जा सकता है, उससे बचा जा सकता १. मेत्तं च सम्बलोकस्मिं, मानसं भावये अपरिमाणं । उद्धं अधो च तिरियं च, असम्बाधं अवेरं असपत्तं ॥ -सुत्तनिपात ८.८ २. मित्ति मे सब्बभूएसु, वेरं मज्झं न केणइ। -श्रमणसूत्र ३०.३ ३. सव्वे सत्ता अवेरिनो होन्तु, मा वेरिनो। -पटिसम्मिदामग्गो १.१.१.६६ ४. तत्त्वार्थ सूत्र ७.६ ५. सुत्तनिपात ३, खग्गविसाणसुत्त ३६ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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