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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खड : ३
रानामय जीवन होता है । ऐसे जीवन के सम्यक् निर्वाह हेतु विधि - निषेध के रूप में शास्त्रों में अनेक प्रेरणा-सूत्र प्रदान किये गये हैं, जो बहुत उपयोगी तथा हितप्रद है। जैन तथा बौद्धपरंपरा में इस सम्बन्ध में जो पथ-दर्शन दिया गया है, वह निश्चिय ही बड़ा अन्तःप्रेरक है, काफ़ी समानता लिये है ।
यह वाञ्छित है, एक मुनि या भिक्षु का प्रत्येक कार्य ऐसा हो, जिससे संयम, वैराग्य साधना और शील की दिव्य आभा प्रस्फुटित होती हो ।
भिक्षु को चाहिए, वह साधुओं, सत्पुरुषों के साथ ही संस्तव - परिचय संपर्क रखे । ' साधक को चाहिए, वह किसी अन्य का तिरस्कार, अपमान न करे। 2
बाल --- अज्ञानी का संग मत करो। उससे कोई लाभ नहीं । जो वैसा करता है, वह स्वयं अज्ञानी है । 3
मुनि को चाहिए, वह अनुवीक्षण पूर्वक — सोच-विचार के साथ मित-परिमित - सीमित, अदुष्ट असत्यादि दोष वर्जित संभाषण करे — बोले । इससे वह सत्पुरुषों के मध्य प्रशंसा प्राप्त करता है । *
वचन ऐसा हो, जो सत्य हो, हितप्रद हो, परिमित हो, ग्राहक या ग्राहक — विवक्षित आशय का सम्यक् रूप में द्योतक हो ।
साधक को चाहिए, वह निद्रा का बहुमान न करे, निद्रा में रस न ले, अधिक न
सोए ।
जो जिनके पास धर्म - पदों - धर्म - शास्त्रों का शिक्षण प्राप्त करे, वह उनके प्रति विनय रखे--उनके साथ विनयपूर्ण व्यवहार करे । मस्तक पर अंजलि बांधे, नमन - प्रणमन करे । मन द्वारा, वाणी द्वारा, शरीर द्वारा सदा उनका सत्कार करे, आदर करे ।
१. चुज्जा साहूहि संथवं ।
२. ण बाहिरं परिभवे ।
- दशकालिक सूत्र ८.३० ३. अलं बालस्स संगेणं जे वा से कारेति बाले ।
- आचारांग सूत्र १.२.५.८
४. मियं अदुट्ठ सयाणमज्झे
- दशवैकालिक सूत्र ८.५३
७. जस्संतिए
अणुवीइ भासए, लहई पसंसणं ।
५. सध्वं च हियं च मियं च गाहगं च ।
- दशर्वकालिक सूत्र ७.५५
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६. णिद्दं च ण बाहुमण्णिज्जा ।
- प्रश्न व्याकरण सूत्र २.२.३
- दशर्वकालिक सूत्र ८.४२ घम्मपयाई सिक्खे,
पजे |
तस्संतिए वणइयं सक्कारए सिरसा कायfग्गरा भो मणसा य णिच्चं ॥
पंजलीओ,
– दशर्वकालिक सूत्र ६.१.१२
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