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________________ xiv आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ इस प्रसंग में संगृहीत उपदेश-वचन नैतिकता, सदाचरण, आन्तरिक शुचिता, पवित्रता, समुन्नति आदि मानव-जीवन के विविध सात्त्विक पक्षों से सम्बद्ध हैं। निश्चय ही जन-साधारण के लिए उन में एक कान्तिकारी आह्वान है, जो कार्मिक पवित्रतामय वातावरण का सर्जन करता है। मुनिश्री द्वारा आकलित उपदेश-वचन उनके चयन-कौशल और श्लाघनीय विवेक के परिचायक हैं। ___ इस ग्रन्थ का द्वितीय भाग आगम-वाङ्मय एवं त्रिपिटक-वाङ्मय के कथानुयोग से सम्बद्ध है । साधारणतया सभी धर्मों में दृष्टान्तों, लोककथाओं तथा काल्पनिक आख्यायिकाओं द्वारा सिद्धान्त-निरूपण का क्रम रहा है। मूल जैन आगमों में कथाओं, उपाख्यानों एवं दृष्टान्तों का प्राचुर्य है । नियुक्ति, भाष्य, चूणि तथा टीका आदि उत्तरवर्ती व्याख्यापरक साहित्य में भी कथानकों की भरमार है। बौद्ध पिटक-साहित्य में भी कथाओं का विपुल प्रयोग हुआ है। आचार्य बुद्धघोष द्वारा पालि में रचित जातक-साहित्य में इस शृंखला का अत्यधिक विस्तार प्राप्त होता है। जातकों की लोक-कथाओं में भगवान् तथागत बुद्ध के मानव तथा पशु आदि योनियों में हुए विगत जन्मों का वर्णन मिलता है, जिससे करुणा, उत्तम आचरण, सन्तोष, सहिष्णुता, विनम्रता, सत्य की विजय, शरणागत-वत्सलता आदि की प्रेरणा प्राप्त होती है। ग्रन्थकार ने दोनों ही परंपराओं से सम्बद्ध कथाओं से ऐसे उदाहरण उपस्थित किये है, जिनमें कथानकों के उत्स, प्रस्तुतीकरण, संभाषण-वार्तालाप आदि के सन्दर्भ में दोनों में असाधारण समानता प्रकट होती है। दोनों परंपराओं के दार्शनिक एवं नैतिक पहलुओं के अध्ययन की दृष्टि से जहाँ प्रथम भाग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, वहाँ द्वितीय भाग कथानकों, विषयवस्तु तथा दृष्टान्तों-उदाहरणों के परिशीलन की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगिता लिये है। मनोवेग एवं भावसौकुमार्य के संवाहक स्वर भी दोनों में असमान नहीं हैं, जिनसे कर्तव्य-चेतना और कर्म-शुचिता का संदेश सम्यक् प्रतिध्वनित होता है। उपदेशों के विविध संदर्भो में प्राकृत एवं पालि की कथाओं को उनके मूल रूप एवं परिवेश में उद्धृत कर लेखक ने बड़ी दक्षता का परिचय दिया है, जो वस्तुतः स्तुत्य है। पाठक इससे बहुत लाभान्वित होंगे। यह बहत ही श्लाघनीय एवं प्रसन्नता का विषय है कि प्रस्तुत ग्रन्थ का संपादन राष्ट्र के प्रख्यात विद्वान् डॉ० छगनलाल शास्त्री ने किया है। डॉ० शास्त्री बिहार स्थित वैशाली प्राकृत जैन रिसर्च इन्स्टीस्यूट में, जो देश में पाकृत तथा जैन विद्या के अध्ययन की दृष्टि से एक प्रतिष्ठापन्न संस्थान है, प्राध्यापक रह चुके हैं। डॉ० शास्त्री वैदिक, जैन तथा बौद्ध दर्शन के प्रबुद्ध मनीषी हैं, गहन अध्येता हैं। मद्रास विश्वविद्यालय में सर्वांगसंपन्न जैन विद्या विभाग की स्थापना में उनका मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सका, यह बहुत उचित हुआ। उनके कृतित्व की प्रशंसा शब्दों में नहीं की जा सकती। __ अपने बहुमूल्य अनुभव एवं संपादन-कौशल द्वारा डॉ० शास्त्री ने यथोपयुक्त शीर्षक, उपशीर्षक, सज्जा आदि का संयोजन कर प्रस्तुत ग्रन्थ को बहुत ही रुचिकर और उपयोगी ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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