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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:३ जघन्य पाप कर सकता है।' बिना दिये दन्तशोधनार्थ तिनका भी नहीं लेना चाहिए । अदत्त का-चोरी का सदा विवर्जन करना चाहिए। सब प्रकार के अदत्त का-बिना दिये वस्तु लेने का, उठाने का-चोरी का परित्याग कर देना चाहिए। मिक्षु-जीवन के आदर्श . एक भिक्षु का जीवन संयम, वैराग्य, तितिक्षा तथा साधना पर टिका होता है। वह मन, वचन एवं कर्म द्वारा संयम से अनुप्राणित रहता है। यही उसके जीवन की आभा है, सौन्दर्य है । वह अकुशल-अशुभ कर्मों से सदा दूर रहता है । राग, काम, लिप्सा एवं वासना से अलिप्त रहता है। वह भय, संशय, आसक्ति से अभिभूत नहीं होता। वह क्षण-क्षण शील, पवित्रता और अध्यात्म-चर्या से आप्यायित रहता है । जो हस्त-संयत है, हाथों का संयम पूर्वक उपयोग करता है, पाद-संयत है, पैरों का संयमपूर्वक उपयोग करता है, वाक्-संयत है, वाणी का संयमपूर्वक उपयोग करता है, इन्द्रिय संयत है, सभी इन्द्रियों का संयमपूर्वक उपयोग करता है, जो अध्यात्म-रस में-धर्म-ध्यान में लीन रहता है, जो समाहितात्मा है—समाधियुक्त है, जो सूत्र एवं अर्थ को यथावत् रूप में जानता है, वस्तुतः वही भिक्षु है। जो मन, वचन एवं काय द्वारा संयत है, इनका संयमपूर्वक उपयोग करता है, वही वस्तुतः भिक्षु है। साधक लाभ-प्राप्ति, अलाभ-अप्राप्ति, सुख-दु:ख, जीवन, मृत्यु, निन्दा, प्रसंशा, मान एवं अपमान में समान भाव लिये रहता है। १. एकं धम्म अतीतस्स, मुसावादिस्स जन्तुनो। वितिण्णपरलोकस्स, नत्थि पापं अकारियं । -धम्मपद १३.१० २. दंतसोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवज्जणं । अणवज्जेस णिज्जस्स, गिण्हणा अवि दुक्करं ।। -उत्तराध्ययन सूत्र १६.२८ ३. सव्वं अदिन्नं परिवज्जयेय्य। -सुत्त निपात २६.२० ४. हत्थसंजए पायसंजए, वायसंजए संजइंदिए। अज्झप्परए सुसमाहिअप्पा, सुत्तत्थं च वियाणइ जे स भिक्खू । --दशवकालिक सूत्र १०.१५ ५. मण-वय-काय-सुसंवुडे जे स भिक्खू । -दशवकालिक सूत्र १०.७ ६. लाभालामे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। समो जिंदा पसंसासु, तहा माणावमाणओ। -उत्तराध्ययन सूत्र १६.६१ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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