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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
साता गिरिर-- "वे असत्य भाषण नहीं करते । वे कठोर वचन प्रयोग नहीं करते । आपत्तिजनक बात नहीं कहते । वे सार्थक एवं श्रेयस्कर बात ही कहते हैं ।'
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हेभवत --"क्या वे काम में अनुरक्त नहीं हैं ? ब्रह्मचारी हैं ? क्या उनका चरित्र निर्मल है ? क्या वे मोह को अतिक्रान्त कर चुके हैं ? क्या वे धर्मों के सन्दर्भ में चक्षुष्मान् हैं ? क्या धर्मों को देखते हैं ? जानते हैं ? ""
सातागिरि - "दे काम में अनुरक्त नहीं हैं, ब्रह्मचारी हैं । उनका चित्त निर्मल है । वे मोह को अतिक्रान्त कर चुके हैं। वे धर्मों के द्रष्टा हैं ।" 3
यों परस्पर विचार-विमर्श कर, चर्चा कर दोनों यक्ष भगवान् के पास आये, प्रश्न पूछे, समाहित हुए ।
अहिसा पार्थिव शरीरमय, जलीय शरीरमय, आग्नेय शरीरमय, वायव्य देहधारी, बीजरूप कनेवरयुक्त, हरितकायिक, जलचर, स्थलचर, खेचर आकाशचारी, त्रस — चलने फिरने वाले, त्रस्त होते - वेदनानुभूति करते प्रतीत होने वाले, स्थावर - स्थितिशील नहीं चलने फिरने वाले जीवों-सभी प्राणियों के लिए क्षेमकरी - कल्याणकारिणी है । "
तुम वही हो, जिसे तुम हन्तव्य - मारने योग्य मानते हो। तुम वही हो, जिसे तुम आज्ञापवितव्य --- अपनी आज्ञा में - दासत्व में रखने योग्य मानते हो। तुम वही हो, जिसे तुम परितापयितव्य - परिताप देने योग्य मानते हो। तुम वही हो, जिसे तुम परिघातयितव्य
१. भुसा च सो न भणति, अथो न खीणव्यपथो ।
अथो भूतियं नाह, मन्ता अत्थं सो भासति ॥
- सुत्तनिपात ६, हेमवत सुत्त ७
२. कच्चि न रज्जति कामेसु, कच्चि चित्तं अनाविलं ! कच्चि मोहं अतिक्कन्तो, कच्चि घम्मेसु चक्खुमा ॥
३. न सो
-- सुत्तनिपात ६, हेमवत सुत्त रज्जति कामेसु,
अथो चित्तं अनाविलं ।
सब्बमोहमतिक्कन्तो,
बुद्धो घम्मेसु चक्खुमा ॥
आचार
- सुत्तनिपात हेमवत सुत्त ६
४. तो विसिट्ठतरिया अहिंसा जा सा पुढवी- जल-अगणि मारुय वणस्सइ बीय हरियजलयर-थलयर-खयर तस थावर - सव्वभूयखेमकरी ।
-- प्रश्नव्याकरणसूत्र २. १. सूत्र १०८
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