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________________ प्राचार त्रस एवं स्थावर-गतिशील एवं स्थितिशील प्राणियों की हिंसा से निवृत्त होने का जिस प्रकार जैन-वाङ्मय में प्रतिपादन है, वैसे ही बौद्ध-वाङ्मय में भी है। वहाँ न केवल भाव-साम्य है, वरन् शब्द-साम्य भी है । इससे अहिंसा की व्यापकता, विराट्ता फलित होती है। आचार के अन्य विभिन्न पहलुओं पर भी दोनों महापुरुषों ने बहुत कुछ समान भाव-भाषा में अभिहित किया है। यहां क्रमशः भगवान् महावीर और बुद्ध के मौलिक उद्धरणों को प्रस्तुत करते हुए आगम व त्रिपिटक साहित्य के आधार पर उनकी आचार विषयक अभिव्यंजना की जा रही है। समुद्धृत ग्रन्थ कौन-सा आगमन्गत है व कौन-सा त्रिपिटकगत, यह तो अब पाठक के लिए स्वयं संवेद्य हो ही गया है। त्रस एवं स्थावर जीवों की हिंसा से निवृत्ति जो त्रस-जंगम-चलने फिरने वाले अथवा जिन्हें त्रस्त होते अनुभव किया जा सकता है, स्थावर-नहीं चलने फिरने वाले-जिनके त्रास या संवेदन का स्थूल दृष्टि से अनुभव नहीं किया जा सकता-इन दोनों प्रकार के प्राणियों की सत्ता एवं स्वरूप को यथावत् रूप में जानकर जो मन, वचन और शरीर द्वारा इनकी हिंसा नहीं करता है न औरों से हिंसा करवाता है, उसे हम ब्राह्मण ब्रह्म-ज्ञानी कहते हैं।' जो त्रस-चर या गतिशील तथा स्थावर-स्थिर या गतिशून्य-सभी प्राणियों पर न प्रहार करता है, न उन्हें मारता है एवं न औरों से मरवाता ही है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। वानस्पतिक जगत् :हिसा-परिहार विज्ञान ने यह स्वीकार कर लिया है कि पेड़-पौधों में भी चेतना या जीवत्व है। सुख-दुखात्मक अनुभूतियाँ भी उनमें हैं। भारत के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक स्व० डॉ० जगदीश चन्द्र बसु ने अपनी सूक्ष्म, गहन वैज्ञानिक गवेषणाओं के आधार पर यह तथ्य उद्घाटित किया जो उत्तरवर्ती वैज्ञानिकों के लिए और आगे अनुसन्धान के निमित्त मार्गदर्शक सिद्ध हुआ। वैज्ञानिक डॉ० बसु से पूर्व वानस्पतिक जगत् के सम्बन्ध में यह तथ्य विज्ञान जगत् में लगभग अपरिज्ञात था। १. तसपाणे वियाणेत्ता, संगहेण य थावरे । जो न हिंसइ तिविहेणं, तं वयं बूम माहणं ॥ -उत्तराध्ययन सूत्र २५.२३ २. निधाय दण्डं भूतेसु थावरेसु च। यो न हन्ति न घातति, तमहं ब्र मि ब्राह्मणं ।। -धम्मपद, ब्राह्मण वर्ग २३ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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