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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३
अंगुत्तर निकाय
सुत्तपिटक, विनयपिटक तथा अभिधम्म पिटक बौद्ध धर्म के मौलिक ग्रन्थ हैं।
सुत्तपिटक दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुक्तनिकाय, अंगुत्तरनिकाय तथा खुद्दकनिकाय नामक पाँच निकायों या ग्रन्थात्मक भागों में विभक्त हैं। इनमें अंगुत्तरनिकाय का रचना की दृष्टि से अन्यों की अपेक्षा अपना विशिष्ट रूप है। इसमें संख्यानुक्रमी पद्धति से घों या विषयों का वर्णन किया गया है।
'जिस प्रकार जैन आगम-वाङ्मय के अन्तर्गत स्थानांग तथा समवानांग सूत्र संख्याक्रमानुगत ग्रन्थ हैं; उसी प्रकार बौद्ध-पिटक-वाङ्मय के अन्तर्गत अंगुत्तरनिकाय वैसा ही संख्याक्रमानुबद्ध ग्रन्थ है । वह निम्नांकित ग्यारह निपातों में विभक्त है
१. एकक निपात २, दुक निपात ३. तिक निपात ४. चडक्क निपात ५. पञ्चक निपात ६. छक्क निपात ७. सत्तक निपात ८. अठ्ठक निपात ६. नवक निपात १०. दसक निपात ११. एकादसक निपात
एकक निपात में उन धर्मों या विषयों का वर्णन है, जो संख्या में एक-एक हैं। दुक निपात में, जो संख्या में दो-दो हैं, वैसे धर्मों का वर्णन है। उसी प्रकार क्रमशः उत्तरवर्ती निकायों में उन विषयों का वर्णन है, जो तीन-तीन, चार-चार, पाँच-पाँच, छः-छः, सात-सात आठ-आठ, नौ-नौ, दस-दस तथा ग्यारह-ग्यारह हैं।
यों स्थानांग एवं समवायांग की ज्यों क्रमश: बढ़ते-बढ़ते ग्यारह की संख्या तक यह क्रम गतिशील रहा है।
पिटकों के अतिरिक्त बुद्ध-वचन के विभाजन का एक और प्रकार भी है, वह नौ अंगों के रूप में है, जो इस प्रकार हैं
१. सुत्त २. गयय ३. वैय्याकरण ४. गाथा ५. उदान ६. इत्तिवुत्तक ७. जातक ८. अब्भुत धम्म ६. वैदल्ल
इनमें इतिवृत्तक की रचना अंगुत्तरनिकाय की ज्यों संख्याक्रमानुबद्ध है। इतिवत्तक का संस्कृत रूप इत्युक्तम् है । 'भगवान् बुद्ध द्वारा ऐसा कहा गया' इस अर्थ में यह प्रयक्त है।
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