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तत्त्व : आचार : कथानुयोग]
तत्त्व स्थान हैं। पहले में एक संख्याश्रित विषय, दूसरे में द्विसंख्याश्रित विषय, तीसरे में त्रिसंख्याश्रित विषय, चौथे में चतु:संख्याश्रित विषय, पाँचवें में पंचसंख्याश्रित विषय, छठे में षट्संख्या श्रित विषय, सातवें में सप्त संख्याश्रित विषय, आठवें में अष्ट संख्याश्रित विषयं, नौवें में नव संख्याश्रित विषय तथा दसवें में दस संख्यात्मक विषय वर्णित हैं।
स्थानांग में संग्रहनय तथा व्यवहारनय-अभेदात्मक एवं भेदात्मक दृष्टिकोण से जीव अजीव आदि तत्त्वों का विशद रूप में प्रतिपादन है।
समवायांग
समवायांग का द्वादशांगी में चौथा स्थान है। इसमें एक से लेकर सौ तक के संख्या श्रित विषय पहले से सौवें समवाय तक वर्णित हैं । सौवें के अनन्तर अनेकोत्तरिका वृद्धि समवाय है, जिसमें क्रमशः एक सौ पचास, दो सौ, ढाई सौ, तीन सौ, साढे तीन सौ, चार सौ, साढे चार सौ, पाँच सौ, छः सौ, सात सौ, आठ सौ, नौ सौ, एक हजार, एक हजार एक सौ, दो हजार, तीन हजार, चार हजार, पाँच हजार, छः हजार, सात हजार, आठ हजार, नौ हजार, दस हजार, एक लाख, दो लाख तीन लाख सत्ताईस हजार, चार लाख, पाँच लाख, छः लाख, सात लाख, आठ लाख, दस लाख, एक करोड़ तथा कोड़ाकोड़-दस नील तक के विषय उल्लिखित हैं।
तत्पश्चात् द्वादशांग गणिपिटक फुटकर विषय और अतीत अनागत कालिक महापुरुषों का पृथक्-पृथक् वर्णन है।
यों समवायांग का परिसमापन होता है।
महत्त्व
स्थानांग एवं समवायांग का विविध-विषय सूचकता की दृष्टि से बड़ा महत्त्व रहा है। कहा गया है-स्यानांग तथा समवायांग के धारक-इनके अध्येता-ज्ञाता ही. आचार्य, उपाध्याय तथा गणावच्छेदक जैसे गौरवमय पद के अधिकारी होते हैं।'
कहने का अभिप्राय यह है, इन दोनों आगमों में ऐसे अनेक अति महत्त्वपूर्ण विषयों का कोशात्मक शैली में समाकलन है। जिनकी जानकारी आवश्यक रूप में आचार्य उपाध्याय एवं गणावच्छेदक को होनी चाहिए।
ये दोनों ऐसे आगम हैं, जिनमें षद्रव्य धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, काल एवं पुद्गलास्तिकाय, नव तत्त्व-जीव, अजीब, आस्रव, सम्वर, निर्जरा, पुण्य, पाप, बन्ध तथा मोक्ष, द्रव्यानुयोग---पदार्थवाद, चरणानुयोगसम्यक-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान, सम्यक्-चरित्र, व्रत, संयम, तप, वैयावृत्त्य, कषाय-निग्रह, ब्रह्मचर्य, समिति, गुप्ति आदि आचारमूलक विषय, गणितानुयोग --- भूगोल, खगोल, गणित आदि से सम्बद्ध विषय एवं धर्म कथानुयोग-दया, दान, शील, क्षमा, ऋजुता, मृदुता आदि उत्तमोत्तम गुणों के प्रख्यापक आख्यान-कथानक-लगभग चारों अनुयोगों का समावेश है।
१. ठाण-समवायधरे कप्पइ आयरियत्ताए, उवज्झायत्ताए, गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्ताए।
-व्यवहारसूत्र, उद्देशक ३
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