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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड : ३
A
सदृश थे। उनकी नासिका गरुड़ की चोंच की ज्यों लम्बी, सीधी और ऊँची थी। उनके ओष्ठ परिष्कृत, सुघटित प्रवाल पट्टिका के जैसे या विम्बफल के समान लालिमा लिये थे । उनकी दन्त पंक्ति ऐसी थी, मानो निष्कलंक चन्द्र के खण्ड हों । वह अत्यन्त निर्मल शंख, गोदुग्ध, फेन, कुन्दपुष्प, जल कण एवं कमल नाल के तुल्य श्वेत थी । तद्गत दांत अखण्डित परिपूर्ण, सुदृढ़, अमग्र, अविरल, चिकने, आभायुक्त, सुन्दराकारमय एवं परस्पर सटे हुए थे। जीभ और तालु अग्नि-परितापित, जल-प्रक्षालित स्वर्ण के समान लाल थे । उनकी दाढ़ी-मूंछ के केशों की यह विशेषता थी, वे कभी नहीं बढ़ते थे, हलके-हलके थे, विचित्र सुन्दरता युक्त थे । उनकी ठुड्डी मांसलतया सुपरिपुष्ट, सुगठित, सुन्दर तथा चीते के सदृश विपुल - विस्तार पूर्ण थी। उनकी ग्रीवा चार अंगुल चौड़ी एवं उत्कृष्ट शंख के सदृश त्रिवलि युक्त और ऊंची उठी हुई थी। उनके स्कन्ध अत्यधिक बल युक्त महिष, शूकर, सिंह, चीते, सांड तथा प्रबल हाथी के कन्धों जैसे आपूर्ण तथा विस्तीर्ण थे । उनकी भुजाएँ युगगाड़ी के जुए या यूप— यज्ञ - स्तंभ खूंटे के समान गोल, प्रबल, सुदृढ, दर्शनीय, परिपुष्ट कलाइयों से युक्त, सुसंगत, विशिष्ट, सघन - सुस्थिर स्नायुओं से समुचित रूप में सुबद्ध एवं नगर की अर्गला के सदृश गोलाकार थीं । अभीष्ट वस्तु प्राप्त करने हेतु सर्प के विस्तीर्ण--- फैले हुए विशाल शरीर की ज्यों उनके सुदीर्घ बाहु थे। उनके पाणि - कलाई से अधस्तन हाथ के भाग उन्नत – ऊँचे उठे हुए, उभरे हुए. सुकोमल, मांसल, गठीले एवं शुभलक्षणयुक्त थे। उनकी यह विशेषता थी, अंगुलियाँ मिलाने पर उनमें छिद्र नहीं दिखाई देते थे, सुसंलग्न प्रतीत होते थे । उनके करतल लालिमामय, पतले, उजले, प्रशस्त, समतल, मांसल परिपुष्ट, रुचिर एवं स्निग्ध- सुचिक्कण, सुकोमल थे। उनके करतलों में चन्द्रमा, सूरज, शंख, चक्र तथा दक्षिणावर्त स्वस्तिक की शुभ रेखाएँ थीं । उनका वक्ष सोने की शिला की ज्यों उज्ज्वलतामय, प्रशस्तिमय, मांसलतया परिपुष्ट, चौड़ा एवं विशाल था । उस पर स्वस्तिक का शुभ चिह्न था । परिपुष्ट, मांसल देहवत्ता के कारण उनके मेरुदण्ड की अस्थि नहीं दिखाई देती थी। उनकी देह स्वर्ण के समान कान्त, उज्ज्वल, सुन्दर, रोगादि से वर्जित थी । उसमें उत्तम पुरुष गत एक हजार आठ शुभ लक्षण संपूर्णतः विद्यमान थे । उनके देह-पार्श्व नीचे की ओर क्रमश: संकड़े, देह प्रमाणानुरूप कमनीय, सुगठित, समुचित परिमित मांसलता पूर्ण एवं मनोहर थे। उनकी छाती तथा पेट पर सीधे, एक जैसे, एक दूसरे से संलग्न, उत्कृष्ट, हलके, काले, स्निग्ध, उत्तम, लावण्यपूर्ण केशों की पंक्ति थी । उनके कुक्षि स्थल - उदर के अधोवर्ती पार्श्वद्वय मीन तथा पक्षी के पार्श्व सदृश सुन्दर रूप में विद्यमान तथा सुपुष्ट । उनका उदर मत्स्योपम था । उनकी आतें निर्मल थीं। उनकी नाभि कमल की ज्यों गूढ, गंगा की तरंग-भ्रमि की ज्यो गोल, दाहिनी और चक्कर काटती हुई लहरों की सदृश घुमावदार, सुन्दर, देदीप्यमान, भास्कर की रश्मियों से खिलते हुए कमल के सदृश विकसित थी । उनके शरीर का मध्य भाग त्रिकाष्ठिका, मुसल एवं दर्पण के हत्थे के बीच के भाग, तलवार मूठ तथा वज्र के सदृश गोल, पतला, प्रमुदित-रोग-दोषादि वर्जित, उत्तम अश्व तथा सिंह की कमर के सदृश वर्तुलाकार था । उनका गुह्य भाग उत्तम अश्व के गुप्तांग की ज्यों था । उच्च जातीय अश्व के समान उनका शरीर मल-मूत्रोत्सर्ग की दृष्टि से लेपवर्जित था । उनकी गति गजराज की तरह पराक्रम एवं गम्भीर्योपेत थी । उनकी जंघाएं हाथी की सूंड के समान सुनिष्पन्न थीं । उनके जानु डिब्बे के ढक्कन के सदृश निगूढ — मांसल होने से बाहर निर्गति नहीं थे । उनकी पिंडलियाँ मृगी की पिंडलियों, कुरुविन्द घास तथा कते हुए सूत की
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