________________
तत्त्व : आचार : कथानुयोग]
तत्त्व है, सर्वथा पृथक् है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।
जो रति रागात्मकता तथा अरति-घृणा का परित्याग कर चुका है, जो शीतलस्वभाव-शान्त-स्वभाव है, जो निरुपाधि-उपाधिरहित या क्लेशरहित है, जो समस्त जगत को, तत्सम्बद्ध लिप्साओं को जीत चुका है, ऐसा योद्धा है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।
जो प्राणियों की च्युति-मरण, उपपत्ति उद्भव को भलीभाँति जानता है, जो असक्त-आसक्ति-वजित है, सुगत-सुन्दर या उत्तम गति को प्राप्त है, जो बुद्धबोधयुक्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।
जिसकी गति-शक्ति या पहुँच को देव, गन्धर्व एवं मनुष्य नहीं जान पाते, जो क्षीणास्रव-आस्रवक्षययुक्त है-राग आदि का क्षय कर चुका है, अर्हत् है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।
न जिसके पहले कुछ है, न जिसके आगे कुछ है तथा न जिसके बीच में कुछ है, जो अनादान है-आदानरहित या परिग्रहवजित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।
जो ऋषभ-उत्तम, प्रवर-अति श्रेष्ठ वीर-आभ्यन्तर बल का धनी, महर्षिमहान् ऋषि-महान् द्रष्टा, विजेता-दुर्बल वृत्तियों को जीतने वाला, अकम्प्य-सुस्थिर, स्नातक-ज्ञान के जल में स्नान किया हुआ-ज्ञानातिशय युक्त तथा बुद्ध है- बोधिप्राप्त है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।
जो पूर्वभव को जानता है, स्वर्ग को जानता है, अगति-जहाँ किसी की गति नहीं उसे-निर्वाण को जानता है, जिसका पुनर्जन्म नष्ट हो गया है—जो जगत् के आवागमन से अतीत है, जो अभिज्ञा-विशिष्ट ज्ञान से समायुक्त है, समस्त अध्यवसान-करणीय प्रयत्न समापन्न कर चुका है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।'
१. हित्वा मानुसकं योग, दिब्बं योगं उपच्चगा।
सब्बयोगविसंयुत्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।। हित्वा रतिञ्च अरतिञ्च, सीतिभूतं निरुपधि । सब्बलोकाभिमुं वीरं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं । चुति यो वेद सत्तान, उपपत्तिञ्च सब्बसो। असत्तं सुगतं बुद्धं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ॥ यस्स गति न जानन्ति, देवा गन्धब्बभानुसा। खीणासवं अरहन्तं, तमहं ब्रमि ब्राह्मणं ॥ यस्स पुरे च पच्छा च, मज्झं च नत्थि किञ्चनं । अकिञ्चनं अनादानं, तमहं ब्रू मि ब्राह्मणं ।। उसभं पवरं वीरं, महेसि विजिताविनं। अनेजं नहातकं बुद्धं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ॥ पुब्बेनिवासं यो वेदि, सग्गापायञ्च पस्सति । अथो जातिक्खयं पत्तो, अभिज्ञावोसितो मुनि । सब्बवोसितवोसानं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ॥
-धम्मपद, ब्राह्मण वर्ग ३५-४१
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org