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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड: ३
कभी नहीं सधता; यह तथ्य शुभ, अशुभ-पुण्य-पाप तथा कुशल, अकुशल के रूप में क्रमशः जैन एवं बौद्ध दोनों ही परंपराओं में सम्यक् प्रतिपादित हुआ है, जो मननीय है।
श्रमण भगवान् महावीर ने विशाल परिषद् को धर्म-देशना देते हुए आख्यात किया-लोक का अस्तित्व है, अलोक का अस्तित्व है। इसी प्रकार जीव, अजीव, बन्ध्र, मोक्ष, , पुण्य, पाप, आस्रव, सम्वर, वेदना, निर्जरा: आदि का अस्तित्व है। .. . .
प्राणातिपात—किसी के प्राणों का हनन, विधात-हिंसा, मृषावाद.----असत्यभाषण, अदत्तादान-बिना दिये किसी की वस्तु का ग्रहण-चौर्य, मैथुन--अब्रह्मचर्यकामाचार, परिग्रह, क्रोध, मान-अहंकार, माया–छल, कपट, लोभ-लालच, प्रेमअव्यक्त माया एवं लोभ प्रसूत प्रेयस् भाव, द्वेष-अप्रकट अहंकार तथा क्रोध प्रसूत अप्रियतामय भाव, कलह-झगड़ा, विवाद, अभ्याख्यान-असत्य दोषारोपण, पैशुन्यपिशुनता-चुगली-किसी की अनुपस्थिति में उसमें विद्यमान, अविद्यमान दोषों का प्राकट्य, पर-परिवार-पर-दोष-कथन-पर निन्दा, रतिः-असंयम में अभिरुचि, सुखानु - भूति, अरति-संयम में अरुचि, असुखानुभूति-अनुराग शून्यता, माया-मृषा-छलपूर्वक असत्य-भाषण तथा मिथ्यादर्शन शल्य-असम्यक् श्रद्धा, असत् आस्था या सत्य-विमुख विश्वासरूप कण्टक ज्ञातव्य है। .. .
प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, पर परिवाद, रति, अति, मायामृषा एवं मिथ्या-दर्शन शल्य से विरमण-इन सबसे विरत होना-इन सबका परित्याग करना ज्ञातव्य है ।
प्राणातिपात---किसी के प्राणों का विच्छेद-नाश करना, हिंसा करना, अदत्तादान-बिना दिये किसी की वस्तु लेना, चोरी करना, काम - रुचि-से वन में मिथ्याचरण, दुराचरण, व्यभिचार, मृषावाद-असत्य-भाषण, पिशुन-वचन-चुगली करना, परुषवचन--कठोर भाषा का प्रयोग, कटु वचन बोलना, संप्रलाप-वृथा बकवास करना, अभिध्या-लोभ, लालच, व्यापाद-प्रतिहिंसा-हिंसा का प्रतिकार हिंसा द्वारा करना तथा मिथ्यादृष्टि-सत्य के प्रतिकूल आस्था, गलत धारणा-इन्हें अकुशल कहा जाता है। - लोभ, द्वेष तथा मोह अकुशलमूल हैं-इनसे अकुशल या पाप उत्पन्न होता है।
प्राणातिपात-विरति-प्राणातिपात से विरत होना, हिंसा का त्याग करना, अदत्ता- दान-विरति-अदत्तादान से विरत होना, चोरी न करना, बिना दिये किसी की कोई वस्तु 'न लेना, काम-विरति-स्त्री-सेवन-सम्बन्धी मिथ्याचरण से, व्यभिचार से विरत होना, मषावाद-विरति-मृषावाद से विरत होना, असत्य-भाषण नहीं करना, पिशुन-वचन विरति-पिशुन-वचन से विरत होना, चुगली न करना, परुष-वचन विरति-परुष-वचन
से चिरत होना, कठोर वचन नहीं बोलना, संप्रलाप-विरति-संप्रलाप से विरत होना, वृथा -बकवास न करना, अन्-अभिध्या-अभिध्या या लोभ से विरत होना, लालच न करना,
१. औपपातिक सूत्र ५६ २. मज्झिमनिकाय, सम्मादिट्ठिसुत्तन्त १.१.६
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