________________
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
४६ ]
वाद वैज्ञानिक विधि क्रम कहा जा सकता है ।
भाषा का विकास यद्यपि शब्दोत्पत्ति की तरह सर्वथा निरपवाद वैज्ञानिक कारण-श्रृंखला पर तो नहीं टिका है, पर, फिर भी वहां एक क्रम-बद्धता हेतुमत्ता तथा व्यवस्था है । वह सापवाद तो है, पर, साधारण नहीं है । ऐसे ही कुछ कारण हैं, जिनसे यह भाषाओं के विश्लेषण का शास्त्र भाषा-विज्ञान कहा जाता है, जो भौतिक विज्ञान से पृथक् होता हुआ भी उसकी तरह कार्य-कारण- परम्परापूर्वक युक्ति और तर्क द्वारा विश्लेष्य और अनुसन्धेय है ।
[ खण्ड : २
Jain Education International 2010_05
निराशा क्यों ?
भाषा - विज्ञान को जब विज्ञान विशिष्ट ज्ञान ) मानते हैं, तो भाषा, जिसका यह विज्ञान है, उसके अन्तर्गत उससे सम्बद्ध सभी पक्षों का अध्ययन एवं अनुसन्धान होना चाहिए । उसके अब तक के इतिहास, विस्तार, विकास आदि के साथ-साथ उसके उद्भव पर भी विचार करना आवश्यक है । गवेषणा के हेतु अपेक्षित सामग्री व आधार नहीं प्राप्त हो सके, इसलिए उस विषय को ही भाषा विज्ञान से निकाल कर सदा के लिए समाप्त कर दिया जाये, यह उचित नहीं लगता । वैज्ञानिक और अन्वेष्टा कभी किसी विषय को इसलिए नहीं छोड़ देते कि उसके अन्वेषण के लिए उन्हें उपकरण व साधन नहीं मिल रहे हैं । अनुशीलन और अन्वेषण का कार्य गतिशील रहेगा, तो किसी समय आवश्यक सामग्री उपलब्ध होगी ही । सामग्री अभी नहीं मिल रही है, तो आगे भी नहीं मिलेगी, ऐसा क्यों सोचें ? इस प्रसंग में संस्कृत के महान् नाटककार भवभूति की यह उक्ति निःसन्देह बड़ी प्रेरणास्पद है : कालो ह्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वीः अर्थात् यह काल निःसीम है और पृथ्वी बहुत विशाल है । इसमें न जाने कब, कौन उत्पन्न हो जाये, जो दुष्कर और दुःसाध्य कार्यं साध लेने की क्षमता से सम्पन्न हो । भविष्य की लम्बी आशाओं के सहारे जो मनस्वी कार्यरत रहते हैं, वे किसी दिन सफल होते ही हैं । कार्य को रोक देना या छोड़ देना तो भविष्य की सब सम्भावनाओं को मिटा देता है। उपयुक्त विवेचन के परिप्रेक्ष्य में साररूप में भाषा के उद्भव पर कुछ और चिन्तन अपेक्षित होगा ।
+
वाक्-प्रस्फुटन
मानव जैसे-जैसे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विकास की मंजिलों को पार करता हुआ आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे भाषा का भी विकास होता गया । वह ज्यों-ज्यों सधन भाव संकुलता की स्थिति में आता गया, त्यों-त्यों अपने अन्तरतम की अभिव्यक्ति के लिए आकुलता या उतावलापन भी उसमें व्याप्त होता गया । "आवश्यकता आविष्कार की जननी है" के अनुसार अभिव्यक्ति का माध्यम भी जैसा बन पड़ा, आकलित होता गया । यह अनुकरण, मनोभावाभिव्यंजन तथा इ गित आदि के आधार पर ध्वनि उद्भावना और ( अंशत: ) भाषा
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org