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भाषा और साहित्य] विश्व भाषा-प्रवाह
[ ४५ कोई विचार नहीं करना होगा । अर्थात् भाषा की उत्पत्ति के सन्दर्भ में सोचने पर परिषद् के संस्थापकों ने प्रतिबन्ध लगा दिया। इस प्रकार एक तरह से इस प्रश्न को सदा के लिए समाप्त कर दिया गया। प्रतिबन्ध लगाने वाले साधारण व्यक्ति नहीं थे, संसार के दिग्गज भाषा-शास्त्री थे। सम्भव है, उन्हें लगा हो, जिसका कोई परिणाम नहीं आने वाला है, उस प्रकार के विषय पर विद्वान् वृथा श्रम क्यों करें ?
गवेषणा नहीं रुकी ___ यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है, प्रतिबन्ध लग गया, पर प्रस्तुत विषय पर अनवरत कार्य चालू रहा। इतना ही नहीं, प्रायः हर दश वर्ष के बाद भाषा की उत्पत्ति के सन्दर्भ में कोई नया वाद या सिद्धान्त प्रस्फुटित होता गया। यह ठीक ही है । मानव स्वभावतः जिज्ञासा-प्रधान और मननशील प्राणी है। जिज्ञासा-प्रतिबन्ध से अवरुद्ध नहीं होती। वह प्रतिभा सम्पन्न, उद्बुद्धचेता व्यक्ति को अभीष्ट की गवेषणा में सदा उन्मुख बनाये रखती है।
विज्ञान शब्द भौतिक विज्ञान के रूप में एक पारिभाषिक अर्थ लिए हुए है। भौतिक विज्ञान कार्य-कारण-परम्परा पर आधृत है। कारण की परिणति कार्य में होती है । कारणसामग्री के बिना कार्य नहीं होता। कारण-सामग्री है, तो कार्य का होना रुकता नहीं। यह निर्बाध नियम है। विज्ञान के इस पारिभाषिक अर्थ में भाषा-विज्ञान एक विज्ञान ( Science ) नहीं है। पर, वह कल्पना-जनित नहीं है, इसलिए उसे कला ( At ) भी नहीं कहा जा सकता। बड़ी उलझन है, कला भी नहीं, विज्ञान भी नहीं, तो फिर वह क्या है ? भाषा वैज्ञानिकों ने इस पहलू पर भी विचार किया है।
मन भाष-संकुल हुआ। अन्तः-स्फुरणा जगी। कल्पना का सहारा मिला। शब्द-समवाय निकल पड़ा। यह कविता है । भाष-प्रसूत है, भाव-संस्पर्शी है; अतः मनोज्ञ है, सरस है, पर, इसका यथार्थ वस्तु-जगत् का यथार्थ नहीं है, कल्पना का यथार्थ है; अतएष यह कला हैं। इसमें सौन्दर्य पहले है, सत्य तदनन्तर । भाषा-विज्ञान इससे पृथक् कोटि का है। विज्ञान की तरह उसका टिकाव भौप्तिक कारण-सामग्री पर नहीं है, पर, वह कारण-शून्य एवं काल्पनिक भी नहीं है। शब्द भाषा का दैहिक कलेवर है। वे मुख से निःसृत होते हैं । पर, कल्पना की तरह जैसे-तैसे ही नहीं निकल पड़ते। शब्द अक्षरों का समवाय है। गलस्थित ध्वनि-यन्त्र, स्वर-तन्त्रियां, मुख-विवर-गत उच्चारण-अवयव आदि के साथ श्वास या मूलाधार से उत्थित वायु के संस्पर्श या संघर्ष से अक्षरों का उद्भव बहुत सूक्ष्म व नियमित कारण-परम्परा तथा एक सुनिश्चित वैज्ञानिक क्रम पर आधृत है। यह सरणि इतनी यांत्रिक व व्यवस्थित है कि इसमें तिल मात्र भी इधर-से-उधर नहीं होता। इसे एक निरप
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