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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : २ अमेरिकन भाषा-शास्त्री जे० पण्डिएस ने इसी बात को इन शब्दों में प्रकट किया है : "भाषा के उद्गम की समस्या का कोई भी सन्तोषजनक समाधान नहीं हो पाया है।" 1
विद्वानों के उपयुक्त विचार निराशाजनक हैं। किसी विषय पर एक दीर्घ अवधि तक अनवरत कार्य करते रहने पर भी जब अभीप्सित परिणाम नहीं आता, तब कुछ थकान का अनूभव होने लगता है। थकान के दो फलित होते हैं-एक वह है, जहां आशा मुरझा जाती है। उसके पश्चात् आगे उसी जोश के साथ प्रयत्न चले, यह कम सम्भव होता है। दूसरा वह है, जहां थकान तो आतो है, पर जो अदम्य उत्साह के धनी होते हैं, वे थकान को, वश्राम बना लेते हैं तथा भविष्य में अधिक तन्मयता एवं लगन से कार्य करते जाते हैं। खोज पर प्रतिबन्ध : विचित्र निर्णय
लगभग एक शताब्दी पूर्व की एक घटना से ज्ञात होगा कि संसार के भाषा वैज्ञानिक भाषा की उत्पत्ति का आधार खोजते-खोजते कितने ऊब गये थे। बहुत प्रयत्न करते रहने पर भो जब भाषा की उत्पत्ति का सम्यक्तया पता नहीं चल सका, तो विद्वानों में उस ओर से पराङमुखता होने लगी। कुछ का कथन था कि भाषा की उत्पत्ति-सम्बन्धी यह विषय भाषाविज्ञान के क्षेत्र का नहीं है। यह नृवंश-विज्ञान या मानव-विज्ञान का विषय है। मानवजाति का विविध सन्दर्भो में किस प्रकार विकास हुआ, उसका एक यह भी पक्ष है। कुछ का विचार दूसरी दिशा की ओर रहा । उनके अनुसार यह विषय प्राचीन इतिहास से सम्बद्ध है। कुछ विद्वानों का अभिमत था कि भाषा-विज्ञान एक विज्ञान है। भाषा की उत्पत्ति का विषय इससे सम्बद्ध है। इस पर विचार करने के लिए वह ठोस सामग्री और आधार चाहिए; जिनका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सके । कल्पनाओं पर विज्ञान नहीं टिकता। इसके वैज्ञानिक परीक्षण और अनुसन्धान के लिए आज प्रत्यक्षतः कोई सामग्री प्राप्त नहीं है । भाषा कब उत्पन्न हुई, कोई भी समय को इयत्ता नहीं बांध सकता। हो सकता है, यह लाखों वर्ष पूर्व की बात रही हो, जिसका लेखा-जोखा केवल अनुमानों के आधार पर कल्पित किया जा सकता है। वैज्ञानिक कसौटी पर कसे जा सकने योग्य आधार न होने के कारण भाषा की उत्पत्ति का विषय भाषा-विज्ञान का अंग नहीं माना जाना चाहिए । इस पर सोचने में और उपक्रम चलते जाने में कोई सार्थकता प्रतीत नहीं होती।
भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में उपयुक्त विचारों ने एक सनसनी पैदा कर दी। पेरिस में ई. सन् १८६६ में भाषा-विज्ञान परिषद् की प्रतिष्ठापना हुई। उसके नियमोपनियम बनाये गये। आश्चर्य होगा, उनके अन्तर्गत यह भी था कि अब से भाषा को उत्पति के प्रश्न पर
1. ...........The problem of the origin of language does not admit of only satisfactory solution.
-J.Kendryes Language, p.315, London,1952
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