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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २
यद्यपि यास्क गायं की इन युक्तियों से परास्त नहीं हुए । उन्होने अपने समाधान प्रस्तुत कर अपनी ओर से आख्यात (धातु) - सिद्धान्त की स्थापना का पूरा प्रयत्न किया, जिसका उल्लेख यहां अपेक्षित नहीं है, पर, गार्ग्य के तर्क प्रभाव शून्य नहीं हो सके । सहस्राब्दियों के बाद आज भी जब धातु सिद्धान्न की समीक्षा और आलोचना की जाती है, तो गार्ग्य के तर्क अभेद्य दुर्ग की तरह सम्मुख खड़े दिखाई देते हैं । प्राकृत और पालि के सन्दर्भ में किये जा रहे भाषा-वैज्ञानिक विवेचन के क्रम में गायं की युक्तियों द्वारा सहस्रों वर्ष पूर्व की एक विचार- सरणि से अवगत हो सकें, इस प्रयोजन से कम प्रासंगिक होते हुए भी इस विषय को यहां उपस्थित किया गया है । भाषा की उत्पत्ति में जो मत, चाहे थोड़े ही सही, कार्यकर हुए, उनका संक्षेप में समीक्षात्मक विवेचन प्रस्तुत प्रसंग के लिए उपयोगी होगा ।
अनुकरण सिद्धान्त
भाषा की उत्पत्ति किसी एक कारण या आधार से नहीं हुई है । उसका निर्माण कई प्रकार के आधारों की भूमि पर टिका है । उनमें एक सिद्धान्त 'अनुकरण' का है । पशुपक्षी मनुष्य के निकट के साथी हैं । उनकी अपनी-अपनी बोली है, जो परस्पर एक-दूसरे से पशु या पक्षी जब प्रसन्न मुद्रा में होते हैं, तब जो आवाज़ करते हैं, वह सम्भवतः भिन्न होती है, जो वे दुःख, पीड़ा या अवसाद में करते हैं । अन्य भी अनेक
भिन्न है 1
उस आवाज़
भाव हो सकते हैं, जिनमें बहुत स्पष्ट न सही, पशु-पक्षियों की बोली में कुछ-न-कुछ भिन्नता
सम्भावित है। एक प्रकार से इसे पशु-पक्षियों की भाषा कहा जा उनकी ध्वनि को
सकता है । भाषाविहीन मनुष्य ने पशु-पक्षियों को बोलते हुए सुना । पकड़ा | जिस पशु या पक्षी से जो ध्वनि आई, उसने उसका व उसकी बोलौ का वैसा नाम दे दिया । उसके आधार पर उससे मिलती-जुलती और भी ध्वनियां या शब्द आविष्कृत किये, जो उसके अपने जीवन की हलचल या प्रवृत्ति से जुड़े हुए थे । उदाहरणार्थ, मानव ने जब बिल्ली को बोलते सुना, नो 'म्याऊ' शब्द उसकी पकड़ में आया । उसने 'म्याऊ' शब्द को बिल्ली की बोली में संकेतित कर लिया और बिल्ली के लिए भी वह इसका प्रयोग करने लगा । हिन्दी में इस शब्द का इसी रूप में प्रचलन है । 'म्याऊ' का मुंह कौन पकड़े' इत्यादि प्रयोग इसके साक्षी हैं । चीनी भाषा में म्याऊ' के स्थान पर 'मिआऊ' प्रयुक्त होता है । मिस्री भागा में बिल्ली के लिए 'माऊ' का व्यवहार होता है । अन्य भी कई भाषाओं में कुछ परिवर्तित उच्चारण के साथ इसका प्रयोग सम्भावित है । काक, घुग्घु, मेंमें ( भेड़ की बोली ), बेबे ( बकरी की बोली ), हिनहिनाना ( घोड़े की बोली ), दहाड़ना ( सिंह की आवाज़ ), फड़फड़ाना (पंखो की आवाज़ ) झींझीं ( झींगुर की आवाज़ ) आदि इसी प्रकार के शब्द से बिबियाना आदि क्रियापद निष्पन्न कर लिये गये ।
हैं । ' में में' से मिमियाना, 'बे बे'
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