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भाषा और साहित्य ] विश्व भाषा-प्रवाह
[ २५ वालों को कठोर आदेश था कि वहां वे कुछ न बोलें। उन शिशुओं के परिचारक को भी कड़ा आदेश था कि वह उनके खाने-पीने की व्यवस्था और देखभाल करता रहे, पर, मुह से कभी एक शब्द भी न बोले । क्रम चलता रहा । बच्चे बड़े होते गये। उन्हें कुछ भी बोलना नहीं आया। उनके मुह से केवल एक शब्द सुना गया-'बेकोस' ( Bekos)। यह शब्द फ्रीजियन भाषा का है। इसका अर्थ रोटी होता है। उन बच्चों के खान-पान की व्यवस्था करने वाला नौकर फ्रिजियन था। ऐसा माना गया कि कभी रोटी देते समय भूल से नौकर के मुह से 'बेकोस' शब्द निकल गया हो, जिसको बच्चों ने पकड़ लिया हो।
बारहवीं शताब्दी में इसी प्रकार का प्रयोग फेडरिक द्वितीय ने किया, पर, अपेक्षित परिणाम नहीं निकला। उसके अनन्तर पन्द्रहवीं शताब्दी में स्काटलैण्ड के राजा जेम्स चतुर्थ ने भी इसी तरह का प्रयोग किया, पर, कुछ सिद्ध नहीं हो पाया। भारत में सोलहवीं शताब्दी में बादशाह अकबर ने भी परीक्षण किया। विशेष सावधानी बरती गयी। बड़ी उत्सुकता से परिणाम की प्रतीक्षा रही। अन्त में यह देखकर सब चकित थे कि सभी बच्चे मूक रह गये। एक भी शब्द बोलना उन्हें नहीं आया ।
प्रयोगों का फलित
प्रयोगों से स्पष्ट है कि संसार में कोई भी भाषा ईश्वर-कृत नहीं है और न जन्म से कोई किसी भाषा को सीखें हुए आता है। यह मान्यता श्रद्धा और विश्वास का अतिरेक है। महत्व की एक बात और है। यदि भाषा स्वाभाविक या ईश्वरीय देन होती, तो वह आदि काल से ही परिपूर्ण रूप में विकसित होती। पर, भाषा का अब तक का इतिहास साक्षी है कि शताब्दियों की अवधि में भिन्न-भिन्न भाषाओं के रूप क्या-से-क्या हो गये हैं। उनमें उत्तरोत्तर विकास होता गया है, जो किसी एक भाषा के शताब्दियों पूर्व के रूप और वर्तमान रूप की तुलना से स्पष्ट ज्ञात हो सकता है। इस दृष्टि से विद्वानों ने बहुत अनुसन्धान किया है, जिसके परिणाम-धिकास की शृखला और प्रवाह का प्रलम्ब इतिहास है।
- * अठारहवीं शदी में श्री जे० जी० हर्डर नामक विद्वान् हुए। उन्होंने सन् १७७२ में भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में शोधपूर्ण निबन्ध लिखा। भाषा की देवी उत्पत्ति के बारे में उन्होंने उसमें समीक्षात्मक दृष्टि से विचार किया और उसे युक्ति एवं तर्कपूर्वक अमान्य ठहराया। पर, स्वयं उन्होंने भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में किसी ठोस सिद्धान्त की स्थापना नहीं की। देवी सिद्धान्त का उन्होंने खण्डन तो किया, पर, साथ ही यह भी कहा कि भाषा मनुष्य-कृत नहीं है। मनुष्य को उसकी आवश्यकता थी, स्वभावतः उसका विकास होता गया।
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