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भाषा और साहित्य]
शौरसेनी प्राकृत और उसका वाङमय
विषय
प्रस्तुत विषय में क्रोध आदि कषायों का स्वरूप, उनके रागात्मक तथा द्वेषात्मक रूप में परिणत होने की विविध स्थितियां आदि का अत्यन्त सूक्ष्म एवं मार्मिक विश्लेषणे है ।
বেনা
कसायपाहुर की रचना गाथा-सूत्रों में हुई है। वे संख्या में २३३ हैं। सूत्र बहुत संक्षेप में हैं, पर गहन और गूढ़ अर्थ से संपृक्त हैं । आचार्य गुणधर ने इस ग्रन्थ की रचना करें षट्खण्डागम के माध्यम से प्रसृत श्र त-परम्परा को और अभिवद्धित किया है। ___ कहा जाता है, प्राचार्य मुणधर ने इसकी रचना कर आचार्य नागहस्ती तथा आर्य मंच के समक्ष इसे व्याख्यात किया । उससे यह परम्परा मागे भी गतिशील रही।
व्याख्या-साहित्य ___ आचार्य यतिवृषभ ने कसायपाहुड पर प्राकृत में छः सहस्र-श्लोक-प्रमासा चूणि-सूत्रों की रचना की। ऐसा माना जाता है कि उच्चारणाचार्य ने आचार्य यतिवृषम से उनके चूरिण-सूत्रों का अध्ययन किया और उन पर द्वादश-सहस्र-श्लोक-प्रमाण उच्चारणं सूत्र रचे । आज यह साहित्य अनुपलब्ध है।
कसायपाहुर पर अत्यन्त महत्वपूर्ण व्याख्या, जिसने इस महान् ग्रन्थ को और अधिक गौरवान्वित किया, स्वनामधन्य प्राचार्य वीरसेन तथा उनके सुयोग्य शिष्य आचार्य जिनसेन की जयधवला टीका है, जिसके सम्बन्ध में पहले भी यथाप्रसंग चर्चा आई है । यह साठहजार-लोक-प्रमाण विशाल टीका है, जिसका प्रारम्भ का बीस सहस्र-श्लोक-प्रमाण भाग भाचार्य वीरसेन द्वारा तथा आगे का चालीस हजार-श्लोक-प्रमाण भाग आचार्य जिनसेन द्वारा रचित है।
इस टीका का कितना अधिक महत्व है, यह इंसी से अनुमान किया जा सकता है कि जिस प्रकार धवला के कारण षट्खण्डागम के पांच खण्ड 'धवल', छठा खण्ड-महाबन्ध 'महाधवल' कहा जाता है, उसी प्रकार जयधवला के कारण कसायपाहुड 'जय धवल' कहा जाता है। कलेवर
कसायपाहुर १५ प्रधिकारों में विभक्त है, जो इस प्रकार हैं : १. पेज्जदोसविभक्ति;
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