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________________ मागम और ब्रिपिटक : एक मनुशीलन পাখি षट्खण्डागम के छहों खण्डों के इस संक्षिप्त परिचय से यह स्पष्ट है कि कर्म-तत्त्वविज्ञान के निरूपण की दृष्टि से यह ग्रन्थ निःसन्देह भारत के दार्शनिक वाङमय में अपना असाधारण स्थान लिए हुए है। कसायपाड (कषायामत) : प्राचार्य धरसेन का वर्णन करते समय प्राचार्य गुणधर के सम्बन्ध में पीछे संकेत किया गया है । जिस प्रकार धरसेन के इतिहास के विषय में हमारे समक्ष निश्चायक स्थिति नहीं है, उसी प्रकार गुणधर का भी कोई ऐतिहासिक इतिवृत्त हमें उपलब्ध नहीं है । धरसेन के विषय में, जैसा कि पिछले पृष्ठों में चचित हुआ है, नन्दिसंघ की प्राकृत-पट्टावली में माघनन्दि के पश्चात् उल्लेख तो है, गुणधर के सम्बन्ध में इतना भी नहीं है। ... श्रु तावतार के लेखक इन्द्रनन्दि ने गुणधर तथा धरसेन-दोनों के इतिवृत्त के सम्बन्ध में अपनी अज्ञता ख्यापित की ही है, जिसकी चर्चा पहले की जा चुकी है। .. गुणधर के दैहिक जीवन का इतिहास हमें नहीं मिल रहा है, यह सच है। पर, तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में उनकी जो बहुत बड़ी देन-उनकी कृति कसायपाहड़ है, वह सदा उन्हें अजर-अमर बनाये रखेगी । व्यक्ति मर जाता है, विचार नहीं मरते । यदि किसी के विचार जीवित हैं, तो निश्चय की भाषा में उसे मृत नहीं कह सकते। आधार षट्खण्डागम की तरह कसायपाहुड भी द्वादशांग से सीधे सम्बद्ध वाङ्मय के रूप में प्रसिद्ध है । चवदह पूर्वो में पांचवां ज्ञानप्रवादपूर्व है। उसकी दशम वस्तु के तृतीय पाहुड का नाम पेज्जदोसपाहुड है । उसी के आधार पर कसायपाहुड़ की रचना हुई; अतः अपने प्राधारभूत पाहुड के नाम पर यह पेज्जदोसपाहुड के नाम से भी अभिहित किया जाता है। पेज्जदोस का संस्कृत-रूप प्रेयस्-द्वेष अर्थात् राग-द्वेष है। यही संसार का मूल है, जिसे सही रूप में जाने बिना, समझे बिना, उच्छिन्न किये बिना बन्धन से छुटकारा नहीं हो सकता। १. गुणधरधरसेनान्वयगुर्वोः पूर्वापरक्रमोऽस्माभिः। न ज्ञायते तदन्वयकथकागममुनिजनाभावात् ॥ १५१ ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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