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आगम और मिपिटक : एक अनुशीलन राजमल्ल (चतुर्थ) का अमात्य तथा सेना नायक था। राजमल्ल का शासन-काल ई० सन् ९७४ से ९८४ माना जाता है । चामुण्डराय महान् योद्धा था। उसने राजमल्ल की शक्ति तथा यश में बहुत वृद्धि की। श्रवणवेलगोला के एक शिलालेख में इस सेना-नायक का बड़े प्रशस्तिपूर्ण शब्दों में उल्लेख किया गया है। वहां उसे धर्मधुरन्धर, वीर-मार्तण्ड, रणरंगसिंह, त्रिभुवनवीर, वैरिकुल-कालदश, सत्य-युधिष्ठिर, सुभट-चूड़ामणि आदि विशेषणों से विभूषित किया गया है, जो उसके परम प्रतापी, वीरतामयी यशस्वी जीवन के स्पष्ट परिचायक हैं।
चामुण्डराय के गौरवशील जीवन का दूसरा पक्ष था-धर्म और साहित्य । उसमें भी उसकी पहुंच अनूठी थी। वह प्रकाण्ड विद्वान् था। उसने कन्नड़ में त्रिशष्टिशलाकापुरुषमहापुराण की रचना की, जो उस भाषा के साहित्य का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है । चामुण्डराय ने संस्कृत में चरित्नसार नामक ग्रन्थ लिखा । इस योद्धा और विद्वान् के समय में निःसन्देह जैन साहित्य, संस्कृति तथा कला की आशातीत वृद्धि हुई । सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य ने इसी को उद्दिष्ट कर गोम्मटसार जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की, जिसका दिगम्बर सम्प्रदाय में बड़ा आदर है तथा जो अपने संक्षिप्त कलेवर में षट्खण्डागम तथा धवला का स्तर समेटे हुए है।
श्रवणवेलगोला में इन्द्रगिरि पर अवस्थित गोम्मटेश्वर–बाहुबलि की विशाल प्रतिमा, जो जगत् का एक प्राश्चर्य है, के निर्माण का श्रेय चामुण्डराय के नाम के साथ जुड़ा है । पौराणिक आख्यान है, चक्रवर्ती भरत ने पोडनपुर में बाहुबलि की ५२५ धनुषाकार ऊंची प्रतिमा का निर्माण कराया था, उसी कथानक से, कहा जाता है, चामुण्डराय ने इस विशाल प्रतिमा के निर्माण की प्रेरणा ली । चामुण्डराय का जीवन-काल दसवी ईसवी के उत्सरावं तथा ग्याहरवीं ईसवी के पूर्वाद्ध के मध्य आता है। राष्ट्रकूट वंश
दक्षिण में जैन धर्म के प्रसार, जैन साहित्य के सर्जन तथा विकास में जिन राजवंशों का योगदान रहा, उनमें राष्ट्रकूट वंशीय राजाभों का महत्वपूर्ण स्थान है । कर्नाटक में माठवीं शती ईसवी से दशवीं शती ईसवी तक यह वंश प्रभावापन्न रहा । হলি নয়।
__ कर्नाटक में ग्यारहवीं से तेरहवीं शताब्दी तक होयसल वंश का राज्य था। यह राजवंश स्वयं जैन धर्म का अनुयायी था। जिस प्रकार गंग राजवंश की स्थापना में जैन मुनि सिंह
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