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________________ भाषा और साहित्य ] शौरसेनी प्राकृत और उसका बागमय । ६३५ नन्दी का आशीर्वाद था, उसी प्रकार इस राजवंश की स्थापना में जैन मुनि शान्तिदेव के आशीर्वाद का योग था। जैन धर्म के व्यापक प्रसार में इसे अत्यन्त उत्साह था। कर्नाटक में अनेक सुन्दर वसदियों तथा प्रतिमाओं आदि का महत्वपूर्ण निर्माण इस राजवंश द्वारा हुआ। ___ उपर्युक्त राजवंशों के अतिरिक्त विजयनगर के नरेशों तथा अन्यान्य राजवंशों व शासकों का भी जैन धर्म के विकास में यथेष्ट योगदान रहा। . साशि ___ यों राजाओं, राज्य के उच्चपदासीनों के प्रभाव, उत्साहपूर्ण योगदान, प्रजाजनों की श्रद्धापूर्ण तीव्र उत्कण्ठा एवं निष्ठा के परिणामस्वरूप जैन धर्म, जैन साहित्य, जैन कला एवं जैन संस्कृति का जो अभ्युदय, विकास एवं विवर्धन दक्षिण में, विशेषतः कर्नाटक में हुआ, निःसन्देह वह भारतीय धर्मों के इतिहास का ऐसा गौरवास्पद स्वर्णिम पृष्ठ है, जिसका आज भी अनेक दृष्टियों से प्राकर्षण बना है । বাম্বথা ঞ্জী ওন পাহী : সুভাৰিী षट्खण्डागम वाङमय को अब तक सुरक्षित बनाये रखने का श्रेय कर्नाटक को है। उसके दक्षिण भाग में अवस्थित मूडबिद्री नामक छोटे से नगर में यह महत्वपूर्ण वाङमय अब तक सुरक्षित रह सका । मूडबिद्री दक्षिण में जैन धर्म का परम पवित्र स्थान रहा है। यह दक्षिण की जैन काशी के नाम से प्रसिद्ध है। इससे अनुमेय है कि जैन धर्म की प्रभावना, उपासना, जैन तत्त्व-ज्ञान के अध्ययन, अनुशीलन, परिरक्षण, परिवर्धन प्रादि की दष्टि से कभी यह नगर दक्षिण में अपना अनुपम स्थान लिए हुए था । विशेषतः कर्नाटक में यह जैन धर्म एवं जैन संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। संसार में अपनी कोटि की अद्वितीय रत्न-प्रतिमाएं एकमात्र यहीं अवस्थित हैं । जो आज भी समग्र जैन जगत के लिए प्राकर्षण की वस्तु है। সুভাৰম্নী :না। जन-श्रुतियों, शिलालेखों आदि के आधार पर मूडबिद्री का जो इतिवृत्त ज्ञात किया जा सका है,संक्षेप में यहां उस पर चर्चा करना अप्रासांगिक नहीं होगा। दक्षिण में जिन-मन्दिरों को वसवि कहा जाता है । मूडबिद्री में सब अठारह वसदियां Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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