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________________ भाषा और साहित्य ] शौरसेनी प्राकृत और उसका वांङमय [ ६२३ वैयक्तिक रूप में शैव धर्म में आस्थावान् था, फिर भी उसका जैन धर्म के प्रति बड़ा आदर था । उसने उसे खूब प्रश्रय दिया। अविनीत का उत्तराधिकारी डुविनीत था । वह उदात्त व्यक्तित्व का धनी था । ४८२ ईसवी में वह सिंहासनासीन हुआ। एक ओर वह जहां महान् योद्धा था, दूसरी ओर वह अत्यन्त धर्मनिष्ठ भी था। शिलालेखों में उसे धर्मराज युधिष्ठिर तथा वैवस्वत मनु से उपमित किया गया है। तत्त्वार्थ सूत्र की सर्वार्थसिद्धि प्रभृति के रचयिता, महान् विद्वान् देवनन्दी पूज्यपाद, जिनके सम्बन्ध में यथाप्रसंग संकेत किया गया है. उसके गुरु थे । उस राजा ने जैन धर्म की बड़ी सेवा की। दुविनीत स्वयं बड़ा विद्वान् था। कहा जाता है, संस्कृत के प्रसिद्ध महाकाव्य किराताजुनीय के स्रष्टा महाकवि भारवि कुछ समय तक उसकी राज-सभा में रहे थे । राजा दुविनीत ने स्वयं किरातार्जुनीय के पन्द्रहवें सर्ग की कन्नड़ में टीका लिखी। वह राजा कन्नड़ गद्य के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में माना जाता है । वह राजा भी, कहा जाता है, व्यक्तिगत रूप में वैष्णव था, पर, जैन धर्म को उसने प्रोत्साहन दिया। उसमें उसकी वैष्णवी श्रद्धा बाधक नहीं बनी । वह इस कोटि की उदारवृत्ति का राजा था। दुविनीत का पुत्र मुश्कर था । वह जैन धर्म में आस्थावान् था। धर्म-प्रसार में परम उत्साही था। उसने अनेक जैन वसदियों का निर्माण कराया। उसकी पीढ़ी के पश्चाद्वर्ती अनेक राजाओं ने भी इस परम्परा को वृद्धिंगत किया। गंग वंश का अन्तिम राजा मारसिंह द्वितीय था । वह महान् विजेता एवं धर्मप्रिय था। पह गंग-वज्र तथा धर्मावतार जैसे विरुद से विभूषित था। अपने जीवन के अन्तिम भाग में उसने आचार्य अजितसेन के पास श्रमण-दीक्षा स्वीकार की। उसने संलेखनापूर्वक मरण प्राप्त किया। उसका मरण-काल ९७४ ई० माना जाना है। उसके अन्त के साथसाथ गंग वंश के स्वतंत्र राज्य का भी अन्त हो गया। गंगवंशियों का एक सामन्ती राजा का दर्जा रह गया। ঋনা জা পান ঘৰী বাথঙহাথ गंग-वंश के सामन्ती काल में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व उदित हुआ, जिसने जैन धर्म और संस्कृति का बहुत गौरव बढ़ाया। वह था, चामुण्डराय, जो गंगवशीय सामन्त नरेश ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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