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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन (पुष्पदन्त) के अल्प आयुष्य का भी प्रत्यय हुआ। उन्होंने साधारण बुद्धि के मनुष्यों को उद्दिष्ट कर पूर्व सूत्र-आचार्य पुष्पदन्त द्वारा रचित सूत्र सहित छः हजार सूत्रों में षट्खण्डागम के पांच खण्ड रचे । फिर तीस सहस्र श्लोक-प्रमाण महाबन्ध नामक छठे खण्ड की रचना की।"
इसका तात्पर्य यह हुआ कि षट्खण्डागम के 'जीव-स्थान' संज्ञक प्रथम खण्ड के बीस अधिकार, जो १७७ सूत्रों में विभक्त हैं, आचार्य पुष्पदन्त ने रचे । प्रथम खण्ड के अवशिष्ट भाग, क्षुल्लक-बन्ध नामक द्वितीय खण्ड, बन्ध-स्वामित्व-विचय नामक तृतीय खण्ड, वेदना नामक चतुर्थ खण्ड तथा वर्गणा नामक पंचम खण्ड की ५८२३ सूत्रों में आचार्य भूतबलि ने रचना की । यों छः हजार सूत्रों में पांच खण्ड पूरे हुए। छठा खण्ड, जिसे तीस सहस्र श्लोक-प्रमाण कहा गया है, प्राचार्य भूतबलि-रचित है । धवला तथा जयधवला में भी इस प्रकार के उल्लेख हैं , जिनसे प्राचार्य भूतबलि द्वारा महाबन्ध का रचा जाना सिद्ध होता है । यों प्राचार्य पुष्पदन्त तथा भूतबलि-दोनों षट्खण्डागम के रचनाकार माने जाते हैं।'
धवला में षट्खण्डागम की आप्त-परम्परा या प्रार्षता की चर्चा इन शब्दों में की गई है : “इस तन्त्र-ग्रन्थ-षट्खण्डागम के मूल कर्ता वर्द्धमान भट्टारक-भगवान् महावीर हैं,अनुग्रन्थ कर्ता गौतम स्वामी हैं तथा उप-ग्रन्थकर्ता राग, द्वेष व मोह रहित मुनिवर भूतबलि, पुष्पदन्त आदि हैं।"
१, तेन ततः परिपठितां भूतबलिः सत्प्ररूपणां श्रुत्वा ।
षट्खण्डागमरचनाभिप्रायं पुष्पदन्त गुरोः ॥ १३७ ॥ विज्ञायाल्पायुष्यानल्पमतीन मानवान् प्रतीत्य ततः । द्रव्यप्ररूपणाद्यधिकारः खंडपंचकस्यान्वक् ॥ १३८ ॥ सूत्राणि षट्सहस्रन थान्यय पूर्वसूत्रसहितानि । प्रविरच्य महाबधाहयं ततः षष्ठकं खंडम् ।। १३९ ॥ त्रिंशत्सहस्रसूत्रनय व्यरचयदसौ महात्मा ।
---इन्द्रनन्दि तावतार २. तदो एवं खंडपिद्धतं पडुच्च भूदबलिपुप्फयंताइरिया वि कत्तारो उच्चंति ।
- षट्खण्डागम, खण्ड १, भाग १, पुस्तक १, पृ० ७१ ३. तदो मूल-तंत-कत्ता वड्ढमाण-भडारओ, अणुतंत-कत्ता गोदमसामी, उवतंतकत्तारा भूदबलिपुप्फयंतादयो बीय-राय-दोस-मोहा मुणिवरा ।
-षट्खण्डागम, खण्ड १, भाग १, पुस्तक १, पृ० ७२
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