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भाषा और साहित्य ] शौरसेनी प्राकृत और उसका बामय [६१३ 'योसदि सूत्रों' के शान से युक्त पाते हैं । पर, साथ-ही साथ उन्हें यह भी पता चलता है कि आचार्य पुष्पदन्त का प्रायुष्य कम है, तब अध्रिगत शास्त्र अविच्छिन्न रहे, यह चिन्ता उन्हें होती है।
___ इस संदर्भ से भी पिछली सम्भावना को बल मिलता है कि पुष्पदन्त को अपना आयुष्य लम्बा न जाम एक सुयोग्य अन्तेवासी की खोज की विशेष चिन्ता हुई हो और तब उनकी दृष्टि में जिनपालित आया हो ।
ঘৰখভাগস #ী প্রশ্বনা
प्राचार्य पुष्पदन्त द्वारा 'वीसदि सूत्र' रचे जाने का उल्लेख किया ही गया है । आगे की रचना के सम्बन्ध में धवलाकार ने लिखा है, प्राचार्य भूतबलि ने इस चिन्ता से कि कहीं 'महाकर्म-प्रकृति-प्राभृत' का व्युच्छेद न हो जाये, द्रव्यप्रमाणानुगम से लेकर समग्र ग्रन्थ की रचना की। ____ जहां से द्रव्यप्रमाणानुगम का प्रारम्भ होता है, वहां भी प्राचार्य भूतबलि की कर्तृकता का ज्ञापन किया गया है । जैसे—......."अब उन शिष्यों को जिन्होंने चतुर्दश विध जीवसमास का अस्तित्व जान लिया है, जीव-समास के परिमाण का प्रतिबोध देने के लिए आचार्य भूतबलि सूत्र कहते हैं।''
यों प्राचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबलि-इन दोनों मनीषियों की समन्वित प्रतिभा तथा श्रम का परिणाम यह विशाल वाङ मय है ।
इन्द्रनन्दि ने श्रु तावतार में षट्खण्डागम के सर्जन के सम्बन्ध में जो उल्लेख किया है, वह इस प्रकार है : "भूतबलि ने (जिनपालित द्वारा) प्रपठित सत्प्ररूपणा को सुना । उससे उन्हें आचार्य पुष्पदन्त के षट्खण्डागम-रचना के अभिप्राय का ज्ञान हुआ । उन्हें उन
१. भूदबलिभयवदा जिणालिद-पासे दिढवीसदि-सुशेण अप्पाउओ त्ति अवगयजिणवालि
देण महाकम्म-पयडि-पाहुडस्स वोच्छेदो होहदि त्ति समुप्पण्ण-बुद्धिणा पुणो दध्वपमाणाणुगममादि काऊण गंथ-रचणा कदा ।
-षटखण्डागम, खण्ड १, भाग १, पुस्तक १, पृ० ७१ २. संपहि चोदसण्हं जीवसमासाणमत्थित्त-मवगदाणं सिस्साण तेसिं चेब परिमाणं पडियो
हणटुं भूदबलियाइरियो सुत्तमाह ।
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