________________
"५५२ ]
और एक अनुशीलन
वय : २
७. उपासकदशा की पद संख्या समवायांग सुत्र और नन्दी सूत्र के अनुसार संख्यात सहस्र मानी जाती है, पर इन दोनों की वृत्तियों में उसकी पद संख्या ११,५२,००० उल्लिखित की गई है । इस समय इसका कलेवर ८१२ श्लोक- प्रमाण है ।
८. अंतकृद्दशा में संख्यात सहस्र पद माने जाते हैं, पर समवायांग सूत्र एवं नन्दी सूत्र की वृत्ति में इसके २३,०४,००० पद होने का उल्लेख किया गया है। वर्तमान में इसमें ९०० श्लोक - प्रमाण सामग्री उपलब्ध है ।
९. अनुत्तरौपपातिक दशा की पद संख्या संख्यात सहस्र मानी जाती है। समवायांगसूत्र तथा नन्दी सूत्र की वृत्ति के अनुसार वह ४६,०८,००० है । वर्तमान में उसका केवल १९२ श्लोक- प्रमारण कलेवर प्राप्त है ।
१०. प्रश्नव्याकरण सूत्र में संख्यात सहस्र पद माने गये हैं । समवायांग सूत्र तथा नन्दी सूत्र की वृत्ति में इसके पदों की संख्या ९२,१६,००० बतलाई गई है। वर्तमान में इसमें १३०० श्लोक - प्रमाण सामग्री है ।
जैसा कि पहले उल्लेख किया ही गया है, नन्दी सूत्र में प्रश्नव्याकरण सूत्र का जो स्वरूप बतलाया गया है, वर्तमान में प्राप्त प्रश्नव्याकरण सूत्र का स्वरूप उससे सर्वथा भिन्न है ।
११. विपाक सूत्र की पद संख्या संख्यात सहस्र मानी जाती है । समवायांग सून एवं मम्बी सूत्र की वृत्ति के अनुसार इसकी पद संख्या १,८४,३२००० है । इस समय यह १२१६ श्लोक - प्रमाण रूप में उपलब्ध है ।
तिलीयपययाति : एक विशेष संकेत
दिगम्बर- परम्परा में यह स्पष्ट मान्यता है कि वीर - निर्वाण सं० ६८३ में द्वादशांगी का विच्छेद हो गया । तिलोयपणत्ति में गाथा १४८२ से १४९२ तक श्रुत- विच्छेद क्रम चर्चित हुआ है, जिसका पिछले पृष्ठों में यथाप्रसंग विवेचन किया गया है। यह सब लिखने के भावजूद यति वृषभ एक बात और कहते हैं : "धर्म-प्रवर्तन के हेतु श्रुत-तीर्थं (चाहे प्रशिक रूप में ही सही) वीर - निर्वारण के २०३१७ वर्षं (जो दुःषमा की समाप्ति से कुछ पहले का समय है) तक संप्रवृत्त रहेगा । तदनुसार वह काल-दोष से व्युच्छिन्न हो जायेगा ।"1
१. बीससहस्सं तिसदा, सत्तारस वच्छराणि सुदतित्थं ।
धम्मपयट्टणहेत,
मोतिवि
Jain Education International 2010_05
कालवोसेणं ।। १४९३ ॥ -तिलोयपम्पत्ति
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org