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आगम और विपिटक : एक अनुशीलन [खन्छ ।२ २. श्री प्रेमीजी की दलीलों में एक यह भी है कि पुण्य प्रकृति आदि विषयक उमास्वाति का मन्तव्य अपराजित की टीका में पाया जाता है। परन्तु गच्छ तथा परम्परा की त्तत्व-ज्ञान-विषयक मान्यताओं का इतिहास कहता है कि कभी-कभी एक ही परम्परा में परस्पर विरुद्ध दिखाई देने वाली सामान्य और छोटी मान्यताएं पाई जाती हैं। इतना ही नहीं, बल्कि दो परस्पर विरोधी मानी जाने वाली परम्पराओं में भी कभी-कभी ऐसी सामान्य व छोटी-छोटी मान्यताओं का एकत्व पाया जाता है । ऐसी दशा में वस्त्रपात्र के समर्थक उमास्वाति का वस्त्र-पात्र के विरोधी यापनीय संघ की अमुक मान्य. ताओं के साथ साम्य पाया जाय तो कोई अचरज की बात नहीं।"1
বিসহ
प्रस्तुत विषय पर विशेष चर्चा करना तो विषयान्तर होगा; अतः बहुत संक्षेप में कुछ संकेत किये जा रहे हैं । तत्त्वार्थ सूत्र को श्वेताम्बर तथा दिगम्बर-दोनों मानते है, पर दोनों द्वारा स्वीकृत पाठ में कुछ-कुछ अन्तर है और दोनों की सूत्र-संख्या" कुछ भिन्न है । सूत्र-पाठ में अन्तर भी मुख्यत: वहां है, जहां दोनों परम्परात्रों में सैद्धान्तिक मत
द्वेध है।
तत्त्वार्थ सूत्र और उस पर भाष्य-इन दोनों के कर्ता श्वेताम्बरों के अनुसार एक हैं। दिगम्बर सूत्र और भाष्य को भिन्न कर्तृक मानते हैं।
दिगम्बरों में तस्वार्थ सूत्र के सबसे प्राचीन व्याख्याकार प्राचार्य पूज्यपाद अपर नाम देवनन्दि हैं । उनका समय विक्रम की पांचवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से छठी शताब्दी के
१. तत्त्वार्थ सूत्र विवेचन सहित, लेखक का वक्तव्य, पृ० १४-१५ २. दिगम्बर-परम्परा द्वारा दशों अध्यायों की स्वीकृत सूत्र-संख्या
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ३३' ५३' ३९' ४२' ४२' २७' ३९' २६' ४७' २
= कुल सूत्र-संख्या ३५७ श्वेताम्बर-परम्परा द्वारा दशों अध्यायों को स्वीकृत सूत्र-संख्या
३३३३. १५. ३३ . ३६.६.६६.
%Dकुल सूत्र-संख्या ३४४
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