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________________ १५६ ] मागम मौर बिपिटक । एक मनुशीलन नगण्य जैसा भेद है । दिगम्बर भगवान् महावीर के पश्चात् गौतम, लीहार्य एवं जम्बूये तीन पीढ़ियां मानते हैं। जब कि श्वेताम्बर भगवान् महावीर के पश्चात् सुधर्मा तथा जम्बू-ये दो पीढ़ियां स्वीकार करते हैं । गौतम के पट्टाधिकार के सम्बन्ध में इस ग्रन्थ में पहले विस्तार से प्रकार डाला जा चुका है । अतः उसे यहां पुनरावृत्त करने की आश्वयकता नहीं है । पट्टाधिकारी के रूप में नाम का स्वीकार न करते हुए भी श्वेताम्बर आम्नाय में भी गौतम को वही गरिम्स और महिमा है, जो दिगम्बर आम्नाय में है। दिगम्बर-परम्परा में गौतम के बाद उनके उत्तराधिकारी का नाम कहीं सुधर्मा लिखा है और कहीं लोहार्य । उदाहरणार्थ-तिलोयपण्णत्ति, नन्दी-अाम्नाय की प्राकृत पट्टावली हरिवंश पुराण, श्रु तावतार, श्रवणवेलगोला (कर्नाटक) के शिलालेख संख्या १०५ में 'सुधर्मा' नाम का प्रयोग हुअा है । धवलाकार ने षट्खंडागम के प्रारम्भिक भाग सत्प्ररूपणा-खण्ड में तथा प्रागे वेदना खण्ड में गौतम के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में लोहार्य का उल्लेख किया है । उसी तरह श्रवणवेलगोला (कर्नाटक) के शिलालेख संख्या १ तथा २ में गौतम के पश्चात् लोहार्य लिखा है। धवलाकार द्वारा रचित जयधवला में लोहार्य न पाकर सुधर्मा माया है। वस्तुतः ये सुधर्मा और लोहार्य-दो व्यक्ति नहीं हैं। लोहार्य सुधर्मा का ही नामान्तर है । श्वेताम्बर-परम्परा में केवल एक नाम सुधर्मा की ही प्रसिद्धि है, जब कि दिगम्बरपरम्परा में दोनों नामों की । जंबूदीप -पण्णत्ति (दिगम्बर-परम्परा की) में इस सम्बन्ध में जो उल्लेख है उससे एक ही व्यक्ति के लिए इन दो नामों की प्रसिद्धि सिद्ध होती है। __ सुधर्मा या लोहार्य के पट्टाधिकारी जम्बू होते हैं, जो दोनों परम्पराओं द्वारा स्वीकृत हैं । यो आर्य जम्बू सक दोनों परम्पराएं यथावत् रूप में चलती हैं। निर्वस्त्रता तथा सवस्त्रता मूलक आचार-क्रम को लेकर समन्वय का भाव बना रहता है, पर आगे वह स्थिति बदल जाती है, जिसका प्रमाण जम्बू के बाद दोनों परम्पराओं की पट्टावलियों की भिन्नता है। १. तेण वि लोहज्जस्स य लोहज्जेण य सुधम्मणामेण । गणधर-सुधम्मणा खलु जंबूणामस्स णिद्दिष्ट्ठ॥१०॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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