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________________ ५५० ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन अवश्य भूत-प्रेत भी वहां उपस्थित हो गये ।। "केशी ने गौतम से कहा- महाभाग ! मैं आप से प्रश्न पूछू ? केशी के यों पूछने पर गौतम ने उनसे कहा-भन्ते ! आप जैसा चाहें, पूछे । केशी यों गौतम से अनुज्ञात होकर पूछने लगे ................................. एक मुनि धर्म अचेलक है, जहां निर्वस्त्रता स्वीकृत है, जो महावीर द्वारा उपदिष्ट है और दूसरा सचेलक है, जहां सवस्त्रता का स्वीकार है, जिसे पार्श्व ने उपदिष्ट किया ऐसा क्यों ?" "दोनों परम्परामों के साधक एक ही लक्ष्य साधने में जुटे हैं, फिर यह भिन्नता क्यों ? प्रबुद्ध गौतम ! यों दो प्रकार के वेष देख आपको संशय उत्पन्न क्यों नहीं होता ? केशी के यों कहने पर गौतम ने कहा- अपने विशिष्ट ज्ञान द्वारा जानकर ही अर्हत ने धर्म के साधक के उपकरणों को अभीप्सित बताया है।" १. केसीकुमार समणे, गोयमे य महायसे । उभओ निरुण्णा सोहंति, चंद सूर समप्पमा ॥ रामागया बहूतत्थ, पासंडा कोउगा मिया । गिहत्याणं अणेगाओ, साहस्सीओ समागया । देवदाणवगंधवा, जक्खरक्खसकिन्नरा । अविस्साणं च भूयाणं, आसी तत्थ समागमो॥ --उत्तराध्ययन सूत्र, २३.१८-२० २. पुच्छामि ते महाभाग, केसी गोयममब्बवी । तओ केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ पुच्छ भन्ते ! जहिच्छं ते, केसि गोयममब्बवी। तओ केसी अणुनाए, गोयम इणमब्बवी ॥ -वही, २३.२१-२२ ३. अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो संतरुत्तरो। देसिओ बद्धमारणेण, पासेण य महाजसा । -वही, २३.२९ ४. एकज्जपवन्नाण विसेसे कि नु कारण । लिंगे दुविहे मेहावी ! कह विपच्चओ न ते ॥ केसि एवं बुवाणं तु, गोयमो इणमब्बवी । विन्नारोण समागम्म, धम्भसाहमिच्छिय ॥ -वही, २३.३०-३१ ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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