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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:२
:সস।ব্যাসঙ্গী থাঘন ঋী ব্যাগ-গথানা : आचार्य श्री धर्मघोष सूरि के दुःषमाकालश्रीश्रमणसंघस्तव के अनुसार भी कालगणना इसी भांति है । उन्होंने भी पालक के ६० वर्ष, नन्दों के १५५ वर्ष, मौर्यों के १०६ वर्ष तथा पुष्यमित्र के राज्य के ३० वर्ष लिखे हैं ।
राज्य-काल की यह गणना केन्द्रीय सत्ता की दृष्टि से की गई प्रतीप्त होती है । यद्यपि पालक अवन्ती का राजा था, पर प्राचार्य धर्मघोष के अनुसार उदायी के निष्पुत्र मरने पर कोणिक-अजातशत्रु के पाटलिपुत्र'-राज्य पर भी उसने अधिकार कर लिया । इस प्रकार वह उत्तर भारत की केन्द्रीय सत्ता पर आ गया था ।
प्राचार्य श्री धर्मघोष सूरि ने किन-किन राज्यों के जैन धर्म के कौन-कौन संघाधिपति थे, यह भी संकेत किया है। उनके संघ-स्तव के उल्लेख के अनुसार पालक तथा नव नन्दों के राज्य के समय आचार्य जम्बू (चालीस+चार वर्ष), आचार्य प्रभव (ग्यारह वर्ष) आचार्य शय्यंभव (तेबीस वर्ष), आचार्य यशोभद्र (पचास वर्ष), प्राचार्य सम्भूति विजय (आठ वर्ष), आचार्य भद्रबाहु (चवदह वर्ष) तथा प्राचार्य स्थूलभद्र (पैतालीस वर्ष) संघ के अधिनायक थे । मौर्य-राज्य में इस स्तव के अनुसार आर्य महागिरि (तीस वर्ष), आर्य सुहस्ती (छियालीस वर्ष) तथा प्राचार्य गुणसुन्दर (बत्तीस वर्ष) जैन संघाधिपति रहे । आचार्य धर्मघोष सूरि ने राज्य के शासन-काल तथा संघनायकों के धर्म-शासन-काल को भी पूरा मिलाया है। इस काल-गणना के अनुसार भद्रबाहु नन्दों के राज्य-काल में होते है । प्राचार्य धर्मघोष सूरि ने नो नन्दों में से प्रत्येक का अलग-अलग शासन-काल दिया है । तदनुसार सातवें नन्द तक
पालगरण्णो सट्ठी, पणपणसयं वियाणि गंदाणं । मुरियाणमट्ठिसयं, तीसा पुण पूसमित्ताणं ॥ सिरिजिणनिव्वाणगमणरयणीए उज्जोणीए चंउपज्जोममरणे पालओ राय अहिसित्तो। तेण य अपुत्त उदाइमरणे कोणिअरज्जं पाडलिपुरं पि अहिट्ठियं । तस्स य वरिस ६०
ज्जे--- गोरा १२ हम्म ८, जंबू ४४, जुगप्पहाणा ' पुणो पाडलिपुरे ११, १०, १३, २५. २५, ६, ६, ४, ५५ नव नंदा एवं वरिस १५५ रज्जे-जंबू शेष वर्षाणि ४, प्रभव ११, शय्यंभव २३, यशोभद्र ५०, संभूतिविजय ८, भद्रबाहु १४, स्थूलभद्र ४५ एवं धीर निर्वाण २१५ ! मोरिअरज्जं १०८ तत्र महागिरिः ३०, सुहस्ती ४६, गुणसुन्दर
३२,.........."पुष्यमित्र ३०............ ! २. यहां मगध राज्य से तात्पर्य है, जिसकी राजधानी उदायों के समय में पाटलिपुत्र थी।
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