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________________ भाषा और साहित्य ] शौरसेनी प्राकृत और उसका वाङमय [ ५३९ वीर-निर्वाण के १५६ होते हैं । आचार्य भद्रबाहु का प्राचार्य-काल १४ वर्ष का है । १७० वीर-निर्वाणाब्द में वे स्वर्गवासी हो जाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि उनका चार वर्ष का प्रारम्भ का आचार्य-काल आठवें नन्द के राज्य काल में रहा तथा आगे का दश वर्ष का आचार्य-काल नौवे नन्द के राज्य काल में रहा । तत्पश्चात् उनके पद पर प्राचार्य स्थूलभद्र पाते हैं, जो नवम नन्द के राज्य-काल के अन्त तक अर्थात् ४५ वर्ष तक धर्म-शासन के अधिपति रहते हैं। बौर-निर्वाण सं० २१५ में नन्दों का राज्य समाप्त होता है, प्राचार्य स्थूलभद्र का स्वर्गवास होता है, चन्द्रगुप्त (चाणक्य की सहायता से) मौर्य-साम्राज्य की स्थापना करता है। इससे स्पष्ट है कि चन्द्रगुप्त का समय प्राचार्य भद्रबाहु 'के ही नहीं, प्राचार्य स्थूलभद्र के भी पश्चात् सिद्ध होता है ।. গণ রূ7 Wাহথা चन्द्रगुप्त को श्रु त केवली प्राचार्य भद्रबाहु का समसामयिक मानने की जो भ्रान्ति पड़ी, उसका एक कारण आचार्य हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व का वह उल्लेख है, जिसमें भगवान् महावीर के मुक्ति-लाभ के १५५ पश्चात् चन्द्रगुप्त के राजा होने का संकेत है। उपरोक्त काल-क्रम के अनुसार वीर निर्वाण २१५ वर्ष तक तो नन्दों का राज्य चलता है । उस बीच वीर निर्वाण १५५ में चन्द्रगुप्त कैसे हुआ ? पूर्व निदर्शित काल-गणना श्वेताम्बर-परम्परा में बहुत प्रामाणिक मानी जाती है । নানী দ্বাথ ওাথী अन्वेष्टा विद्वानों ने प्राचार्य हेमचन्द्र के उक्त उल्लेख पर बहुत ऊहापोह तथा विमर्षणअन्वेषण किया है, पर, कोई ऐसा ठोस ऐतिहासिक प्राधार नहीं मिल सका, जिससे आचार्य हेमचन्द्र का कथन सिद्ध होता हो । हिमवत् थेगावली में तो कुछ इस प्रकार का उल्लेख अवश्य है, जिसमें प्राचार्य हेमचन्द्र के कथन को कुछ सहारा मिलता है । यहां कहा गया है कि वीर निर्वाण १५४ में चन्द्रगुप्त मगध का राजा बना। वीर निर्वाण १७० में १. एवं च श्रीमहावीर-मुक्त वर्षशते गते । पञ्चपञ्चाशदधिके चन्द्रगुप्तोऽभवन्नृपः ॥ -परिशिष्ट पर्व, ३३९ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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