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________________ १२० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन खण्ड : २ था । उसने इस-श्वेताम्बर मत का प्रवर्तन किया। उसने स्थापना की कि स्त्रियों की उसी भव (स्त्री-पर्याय) में मुक्ति हो सकती है। केवली ककलाहार करते हैं और वे रुग्ण भी होते हैं। सवस्त्र मति-श्रमण भी सिद्धत्व प्राप्त कर सकता है। उसने यह भी स्थापना की कि भगवान् महावीर का गर्भापहार हुअा था (पहले वे ब्राह्मणी देवानन्दा के गर्भ में आये थे और बाद में देव द्वारा क्षत्रियाणो त्रिशिला के गर्भ में प्रतिष्ठित किये गये) । जिनसम्मत वेष के अतिरिक्त इतर वेष में भी मुक्ति हो सकती है। (मुनि द्वारा) प्रासुक–अश्वित्त भोजन सब कहीं से लिया जा सकता है। उसने और भी इस प्रकार के सिद्धान्तों को लेकर प्रागम-विरुद्ध मिथ्या-शास्त्रों की रचना की थी। वह मर कर प्रथम नरक में गया।" भा-संग्रह के अनुसार श्वेताम्बर-भक ___दर्शनसार के रचयिता देवसेन के अतिरिक्त एक देवसेन और हैं, जिनका भाव-संग्रह नामक ग्रन्थ दिगम्बर-सम्प्रदाय में प्रसिद्ध है। उसमें श्वेताम्बर-संघ की उत्पत्ति का जो वर्णन किया गया है, वह इस प्रकार है : "सम्राट् विक्रमादित्य के देहावसन के एकसौ छत्तीस वर्ष पश्चात् सौराष्ट्र प्रदेश के वलभी नामक नगर में श्वेतपट-श्वेताम्बर-संघ का प्रादुर्भाव हुआ । उज्जयनि नमर में १. छत्तीसे वरिससए विक्कमरायस्स वरणपत्तस्स । सोरठे वलहीं ए उप्पणी सेबडो संघो ॥ ११ ॥ सिरिभहबाहु गणिणो सीसो णामेण संति आइरिओ। तस्स य सीसो दुछो जिणचंदो मंदचारित्तो ॥ १२ ॥ तेण कियं मयमेयं इत्थीगं अत्थि तस्भवे मोक्खो। केवलणाणीण पुमो अदृक्खाणं तहा रोओ।। १३ ।। अंबरसहिओ वि जई सिज्झइ वीरस्स गन्भचारत । परलिंगे वि य मुत्ती फासुयभोजं च सव्वत्थ । १४ ॥ अण्णं च एवमाइ आगमबुट्ठाई मित्थसत्थाई । विरइत्ता अप्पाणं. परिठवियं पढमए गरए ॥ १५ ॥ -दर्शनसार (देवसेन) २. छत्तीसे बरिससए विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स । सोरटे उप्पण्णो सेवडसंघो हु वल्लहीए ॥ ५२ ॥ -भावसंग्रह ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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