________________
भाषा और साहित्य ]
उपसंहार
. श्वेताम्बर - परम्परा में दिगम्बरों के सम्बन्ध में प्रायः सर्वत्र इसी कथानक का उल्लेख पाया जाता है, जब कि दिगम्बर-परम्परा में श्वेताम्बरों के उद्भव के सम्बन्ध में कई कथानक प्रचलित हैं, जिनका मागे उल्लेख किया जायेगा ।
शौरसेनी प्राकृत और उसका वाङमय
आवश्यक नियुक्ति की वृत्ति में तथा विशेषावश्यक भाष्य व वृत्ति में वरित कथानकों में संक्षेप, विस्तार के अतिरिक्त कोई खास अन्तर नहीं है । केवल इतना-सा है—मलयगिरि ने वेश्या द्वारा दूसरी बार साध्वी उत्तरा के वक्ष तथा कटि, दोनों अंगों पर वस्त्र लगाये जाने का उल्लेख किया है। वहां करि-प्रदेश अध्याहृत माना जा सकता है ।
५१९
उत्तरा के प्रसंग का निष्कर्ष यह रहा कि बोटिक-मत या तथाकथित दिगम्बर-मत में उस समय साध्वी या श्रार्थिका का स्वीकार तो हुआ, पर केवल एक या दो वस्त्रों के साथ 1 यदि वही परम्परा आगे बढी तो फिर आर्यिका के लिए अधिक वस्त्र कैसे स्वीकार हुए । वस्तुतः ऐसे कथानक ऐतिहासिकता की कोटि में नहीं ते । वे क्यों गढ़ लिए जाते हैं, इस सम्बन्ध में पाये यथाप्रसंग समीक्षा की जायेगी ।
दिगम्बर- मान्यता
दर्शनसार में उल्लेख
श्राचार्य देवसेन रचित दर्शनसार दिगम्बर-सम्प्रदाय की एक ममारत पुस्तक है । उसमें श्वेताम्बर - सम्प्रदाय के प्रादुर्भाव का जो वर्णन किया गया है, वह इस प्रकार है :
"सम्राट् विक्रमादित्य के देहावसान के एकसौ छत्तीस वर्षं पश्चात् सौराष्ट्र के चलभी' नामक नगर में श्वेतपट - श्वेताम्बर संघ प्रादुर्भूत हुआ 1 श्री भद्रबाहु गगी के शिष्य शान्त्याचार्य थे । उनका जिनचन्द्र नामक शिष्य था । वह चारिव्य में शिथिल तथा दूषित
Jain Education International 2010_05
१. रचना-काल वि० सं० १९०
२. गुजरात के पूर्व भाग में स्थित भाभा नगर के समीप यह प्राचीन नगर बसा हुआ था । प्राचीन काल में यह नगर अत्यन्त समृद्ध एवं विशाल था । ईसा की सातवीं शती में भारत में आये चीनी पर्यटक ह्वे नत्सांग ने अपने यात्रा विवरण में इसका उल्लेख किया
| तब यह नगर सुन्दर रूप में विद्यमान था । कहा जाता है कि आज सौराष्ट्र का 'चला ' ग्राम जहां है, वहीं यह नगर अवस्थित था । श्वेताम्बर जैन आगमों का संकलन एवं सम्पादन वहीं हुआ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org