________________
भाषा और साहित्य ]
विश्व भाषा-प्रवाह जो वेदांग' कहे जाते हैं। ___ शिक्षा (ध्वनि-विज्ञान ) का वेद की संहिताओं से गहरा सम्बन्ध है। वैदिक संहिताओं का शुद्ध उच्चारण किया जा सके, उनका स्वर-संचार यथावत् रह सके, इसके लिए अनेक नियम गठित किये गये। जिन ग्रन्थों में इनका विशेष वर्णन है, वे प्रातिशाख्य कहलाते हैं। प्रातिशाख्य प्रतिशाखा से बना है। पृथक्-पृथक् वेदों की भिन्न-भिन्न शाखाए मानी गयी हैं। उन शाखाओं से सम्बद्ध संहिताओं के शुद्ध उच्चारण का भिन्नभिन्न प्रातिशाख्य ग्रन्थों में उल्लेख है। प्रातिशाख्यों का सर्जन विश्व का प्राचीनतम भाषा-वैज्ञानिक कार्य है। इसका मुख्य उद्देश्य मात्रा काल, स्वराघात, उच्चारण की विशिष्टताओं का प्रदर्शन, संहिताओं के रूढ़िगत उच्चारण की सुरक्षा, वैज्ञानिकता एवं सूक्ष्मता के साथ ध्वनियों का विवेचन तथा ध्वनि-अंगों की जानकारी देना था। प्रातिशाख्यों के अतिरिक्त कतिपय शिक्षा ग्रन्थ भी हैं, जो कलेवर में छोटे हैं। वेद का यह अंग भाषाविज्ञान से बहुत अधिक सम्बद्ध है। ध्वनि-विज्ञान-सम्बन्धी अनेक प्रश्नों का समाधान एक सीमा तक इसमें प्राप्त है। उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित के रूप में स्वरों के उच्चारण के विशेष क्रम भी ध्वनि-विज्ञान से सूक्ष्मतया सम्पृक्त हैं ।
कल्प पारिभाषिक शब्द है, जो कर्म-काण्ड-विधि के लिए प्रयुक्त हुआ है। दूसरे से छठे तक पांच अंगों में चौथा 'निरुक्त' भाषा-विज्ञान की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । निरुक्त के रचयिता महान् विद्वान् यारक थे। उनका समय लगभग ई० पू० ८०० माना जाता है ।
वैयाकरणों का अभिमत निरुक्तकार यास्क ___यास्क ने निरुक्त या व्युत्पत्ति-शास्त्र की रचना कर भारतीय वाङमय को वास्तव में बड़ी देन दी। उनके द्वारा रचित व्युत्पत्ति-शास्त्र विभिन्न शब्दों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो सूचनाए देता है, वे बहुत महत्वपूर्ण हैं। यास्क के सामने उस समय भाषा के दो रूप विद्यमान थे, वैदिक भाषा और लौकिक भाषा। वैदिक भाषा से उनका तात्पर्य उस संस्कृत सहै, जिसका वेदों में प्रयोग हुआ है। वे उसे निगम, छन्दस् , ऋक् आदि नाम भी देते हैं। लौकिक भाषा के लिए वे केवल 'भाषा' व्यवहृत करते हैं। उनके अनुसार पैदिक संस्कृत मूल भाषा है तथा लौकिक भाषाए उससे निकली हैं । ___आज के भाषा-वैज्ञानिक एक ऐसी भारोपीय परिवार की अत्यन्त प्राचीन मूल भाषा की भी कल्पना करते हैं, जो वैदिक संस्कृत तथा तत्समकक्ष अन्यान्य तत्परिवारीय प्राच्य व १. शिक्षा व्याकरणं छन्दो निरुक्तं ज्योतिषं तथा।
कल्पश्चेति षडंगानि वेदस्याहर्मनीषिणः ॥
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org