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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २
को लेना होगा । उसके बिना किसी भी भाषा का वैज्ञानिक दृष्टि से परिशीलन अपूर्ण रहेगा । अर्थ-विज्ञान के अन्तर्गत वर्णनात्मक, समीक्षात्मक, तुलनात्मक तथा इतिहासात्मक; सभी दृष्टियों से अर्थ का अध्ययन करना अपेक्षित होता है । अर्थ- परिवर्तन, अर्थ-विकास, अर्थ- ह्रास तथा अर्थ- उत्कर्ष आदि अनेक पहलू इसमें सहज ही आ जाते हैं ।
वाक्य-विज्ञान (Syntax)
भाषा का प्रयोजन अपने भावों की अभिव्यंजना तथा दूसरे के भावों का यथावत् रूप में ग्रहण करना है । दूसरे शब्दों में इसे ( भाषा को ) विचार-विनिमय का माध्यम कहा जा सकता है | ध्वनि, शब्द, पद, ये सभी भाषा के आधार हैं । पर, भाषा जब वाक्य की भूमिका के योग्य होती है, तब उसका कलेवर वाक्यों से निष्पन्न होता है । पद वाक्य में प्रयुक्त होकर ही अभीप्सित अर्थ प्रकट करने में सक्षम होते हैं । वाक्य में पदों या शब्दों का स्थानिक महत्व भी होता है; अतः अर्थ-योजन में स्थान निर्धारण भी अपेक्षित रहता है । उदाहरणार्थ, I go to school अंग्रेजी के इस वाक्य में 'Go' क्रिया दूसरे स्थान पर है । Go to school इस वाक्य में भी 'Go ́ क्रिया का प्रयोग है। यहां Go पहले स्थान पर है | पर, स्थान-भेद के कारण इस क्रिया के अर्थ में भिन्नता आ गयी है । पहले वाक्य में यह क्रिया जहां सामान्य वर्तमान की द्योतक है, वहां दूसरे वाक्य में आज्ञा द्योतक है । वाक्य- विज्ञान से सम्बद्ध इसी प्रकार के अनेक विषय हैं, जो वाक्य रचना की विविध अपेक्षाओं पर टिके हुए हैं । उन सबका इस विभाग के अन्तर्गत विवेचन और विश्लेषण किया जाता है ।
निर्वचन - शास्त्र [ व्युत्पत्ति-विज्ञान ] ( Etymology )
शब्दों की उत्पत्ति, उनका इतिहास आदि का इस विभाग में समावेश है । शब्दों की उत्पत्ति की अनेक कोटियां तथा विधाएँ हैं, जिनके अन्वेषण से और भी अनेक तथ्य प्रकट होते हैं । मानव के सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन से उनका गहरा सम्बन्ध है । प्राचीन काल में भाषा-विज्ञान का इस प्रकार का अध्ययन व्यवस्थित एवं विस्तृत रूप में नहीं हुआ । भारतवर्ष और यूनान में एक सीमा तक इस सन्दर्भ में प्रयत्न चले थे । यूनान में बहुत स्थूल रूप में इस पर चर्चा हुई । पर, भारतीय मनीषी उस समय की स्थितियों और अनुकूलताओं के अनुसार अधिक गहराई में गये थे ।
विश्व में उपलब्ध साहित्य में वैदिक वाङमय का ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व है । वेदों में प्रयुक्त भाषा और तद्गत अर्थ व परम्परा सदा अक्ष ण्ण बनी रहे, इसके लिए विद्वानों ने शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्दः शास्त्र, ज्योतिष और निरुक्त ६ शास्त्र और प्रतिष्ठित किये,
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