________________
भाषा और साहित्य ]
विश्व भाषा-प्रवाह कहे जाते हैं।1 रूप-विज्ञान में इस प्रकार के नाम व आख्यात ( क्रिया ) पदों ( रूपों) के विश्लेषण, विकास तथा अव्यय, उपसर्ग, प्रत्यय आदि का तुलना मक विवेचन होता है। अर्थ-विज्ञान ( Semantics )
शब्द और अर्थ का अविच्छिन्न सम्बन्ध है। अर्थ-शून्य शब्द का भाषा के लिए कोई महत्त्व नहीं होता। शब्द बाह्य कलेवर है, अर्थ उसकी आत्मा है। केवल कलेवर की चर्चा से साध्य नहीं सधता। उसके साथ-साथ उसकी आत्मा का विवेचन भी अत्यन्त आवश्यक होता है। शब्दों के साथ संश्लिष्ट अर्थ का एक लम्बा इतिहास है। किन-किन स्थितियों और हेतुओं से किन-किन शब्दों का किन-किन अर्थों से कब, कैसे सम्बन्ध जुड़ जाता है; इसका अन्वेषण एवं विश्लेषण करते हैं, तो बड़ा आश्चर्य होता है। वैयाकरणों द्वारा प्रतिपादित शब्दाः कामदुधाः इसी तथ्य पर प्रकाश डालता है। इसका अभिप्राय यह था कि शब्द कामधेनु की तरह हैं। अनेकानेक अर्थ देकर भोक्ता या प्रयोक्ता को परितुष्ट करने वाले हैं। कहने का प्रकार या क्रम भिन्न हो सकता है, पर, मूल रूप में तथ्य वही है, जो ऊपर कहा गया है। उदाहरणार्थ, जुगुप्सा शब्द को लें। वर्तमान में इसका अर्थ घृणा माना जाता है। यदि इस शब्द के इतिहास की प्राचीन पर्ते उघाड़े, तो ज्ञात होगा कि किसी समय इस शब्द का अर्थ 'रक्षा करने की इच्छा' (गोप्तुमिच्छा जुगुप्सा ) था। समय बीता। इस अर्थ में कुछ परिवर्तन आया। प्रयोक्ताओं ने सोचा होगा, जिसकी हम रक्षा करना चाहते हैं, वह तो छिपा कर रखने योग्य होता है; अतः 'जुगुप्सा' का अर्थ गोपन (छिपाना ) हो गया। मनुष्य सतत मननशील प्राणी है । · उसके चिन्तन एवं मनन के साथ नये-नये मोड़ आते रहते हैं। उक्त अर्थ में फिर एक नया मोड़ आया। सम्भवतः सोचा गया हो, हम छिपाते तो जघन्य वस्तु को हैं, अच्छी वस्तुए तो छिपाने की होती नहीं। इस चिन्तन के निष्कर्ष के रूप में जुगुप्सा का अर्थ 'गोपन' से परिवर्तित होकर 'घृणा' हो गया। वास्तव में शब्द का स्रष्टा एवं उसका प्रयोक्ता मानव है। प्रयोग की भिन्न-भिन्न कोटियों का मानव की मनः-स्थितियों से सम्बन्ध है।
शब्द और अर्थ के सम्बन्ध आदि पर विचार, विवेचन और विश्लेषण इस विभाग के अन्तर्गत आता है। वर्तमान के कुछ भाषा-वैज्ञानिक इसको भाषा-विज्ञान का विषय नहीं मानते । वे इसे दर्शन-शास्त्र से जोड़ने का प्रयत्न करते हैं। प्राचीन काल के कुछ भारतीय दार्शनिकों ने भी प्रसंगवश शब्द और अर्थ के सम्बन्ध की चर्चा की है। पर, जहां स्वतंत्र रूप से भाषा-शास्त्र के सांगोपांग विश्लेषण का प्रसंग हो, वहां इसे अनिवार्यतः उसो १. वर्गाः पदं प्रयोगाहान्वितकार्यबोधकाः ।
-साहित्य दर्पण; २.२
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org