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भाषा और साहित्य []
शौरसेनी प्राकृत और उसकी वाङमय
[५११
भगवान् महावीर के तीर्थ में बहुरतवाद, जीव- प्रदेशवाद, अव्यक्तवाद, सामुच्छेदवाद. विवाद, त्रैराशिकवाद तथा अबद्धिकवाद; यों सात प्रकार का निह्नवमत प्रवृत्त हुआ । बहुरतवाद का जमालि से, जीवप्रदेशवाद का तिष्यगुप्त से, अव्यक्तवाद का आसाढ से, समुच्छेदवाद का प्रश्वमित्र से, द्वक्रियवाद का गंग से, त्रैराशिकवाद का षडुलूक (रोहगुप्त ) से तथा बद्धिकवाद का गोष्ठामाहिल से उद्भव हुआ ।
बहुरतवाद का उद्भव - स्थान श्रावस्ती, जीवप्रदेशवाद का ऋषभपुर, अव्यक्तवाद का श्वेतविका, समुच्छेदवाद का मिथिला, द्व क्रियवाद का उल्लुकातीर, त्रैराशिकवाद का अन्तरञ्जिका तथा अबद्धिकवाद का दशपुर था । इन सातों उद्भव स्थानों के अतिरिक्त बोटिक ( दिगम्बर) - निह्न के उत्पत्ति-स्थान का भी वहां (मलयगिरि-वृत्ति में) जिक्र है । 1
गाणं सत्त उप्पलिनगरे होत्या - तं जहा - सावत्थी, उसभपुरं, सेयाविया, मिहिला, उल्लुगातीरं पुरिमंतरंजि, वसपुरं, निष्हगउष्पत्तिनगराई ।
-स्थानांग सूत्र ७, पृ० ७०८-७०९
१, बहुरय-पएस - अव्वत्त-समुच्छ दुग-तिग-अबद्धिआ चेव । सत्ते ए निण्हगा खलु तित्थम्मि उ बद्धमाणस्स ॥
गाथा ७७८
१. बहुरताः, २. जीवप्रदेशाः, ३. अव्यक्ताः (अव्यक्तमताः), ४. सामुच्छेदाः, ५. तु क्रियाः, ६. वैराशिकाः, ७. अबद्धिकाः । साम्प्रतं येम्भ एते सप्त उत्पन्नास्तान्
प्रतिपादयकाह
बहुरय- जमालिपभवा जीवपएसा य तीसगुत्ताओ । अव्यताssसाढाओ सामुच्छे आऽऽसमित्ताओ ।। ७७९ ॥
गंगाओ वोकिरिया छलुगा तेरासिआण उप्पत्ती ।
थेरा य गुटुमाहिल पुट्ठमबद्ध पविति ॥ ७८० ॥
बहुरता जमालिप्रभवाः, जमालेराचार्यात् प्रभवो येषां ते तथाविधाः, जीवप्रदेशाः पुनस्तिष्यगुप्तादुत्पन्नाः, अव्यक्ता आषाढात् सामुच्छेवा अश्वमित्रात्, गंगात् द्वं क्रियाः, षडुलूकात् वैराशिकानामुत्पत्तिः ।
साम्प्रतमेते हि नवा येषु स्थानेषूत्पन्नास्तानिप्रतिपादयन्नाह
सावत्थी उसभपुरं सेअविआ मिहिल उल्लुगातीरं ।
पुरिमंतरंजि वसपुर रहवीर पुरं च नयराई ॥ ७८१ ॥
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