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________________ ५१० आगम और fafपटक । एक अनुशीलन t: खण्ड: ई ये ह्निव अंशत: विसंवादी होते हैं । बाह्य वेष-भूषा में इनका ( जैन श्रमरणों से ) भेद नहीं होता । इसी प्रसंग में बोटिक निह्नव का भी उल्लेख किया गया है । कहा गया है कि वे (बोटिक) सर्व विसंवादी अर्थात् लगभग सभी विषयों में विपरीत मत लिए हुए हैं । 1 सारांश इस व्याख्या से स्पष्ट है कि श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार जैन परम्परा में समयसमय पर कुछ ऐसे विद्रोही होते रहे हैं, जिनका सिद्धान्त के किसी विशेष पहलू पर मतभेद हुआ । उन्होंने अपने मतवाद का प्रसार किया । उनका अपना सम्प्रदाय बना । इनका स्व-स्व-गृहीत पक्षों के अतिरिक्त प्रायः अन्य सभी बातों में जैन सिद्धान्त से ऐकमत्य था । वेषभूषा में भी इनमें जैन श्रमणों से अन्तर नहीं था । यही कारण है, इन्हें जैन परम्परा के सर्वथा बहिर्भूत न मानकर निह्नव अर्थात् अपलापी की संज्ञा दी गई है । बोटिक की अभिधा से दिगम्बर भी वहां संकेतित हैं, जिनकी यथाप्रसंग विशद चर्चा की जायेगी । स्थानांग तथा आवश्यक- नियुक्ति में उल्लेख स्थानांग सूत्र के सप्तम स्थान में सात निह्नवों का उल्लेख हुआ है ।" आवश्यक नियुक्ति में उसी विषय को कुछ विस्तार से उपस्थित किया गया है। उसके अनुसार १. तीर्थंकर भाषितमर्थमभि निवेशात् निह्नवते प्रपंचतोऽपलपन्तीति निह, नवाः, एते च मिथ्यादृष्टयः सूत्रोक्तार्थापलपनात् उक्तं च २, “सूत्रोक्तस्यैकस्याप्यरोचनादक्षरस्य भवति नरः । मिथ्यादृष्टिः सूत्रं हि नः प्रमाणं जिनाभिहितम् ॥" खल्विति विशेषणे, किं विशिनष्टि ? एते साक्षादुपात्ता उपलक्षणसूचिताश्च देशविसंवादिनो द्रव्यलिंगेनाभेदिनो नि, नवाः, बोटिकास्तु वक्ष्यमाणाः सर्वविसंवादिनो द्रव्यगतोऽपि भिन्ना निह नवा इति तीर्थे बद्ध मानस्य । - आवश्यक-निर्युक्ति की ७७८वीं गाथा पर वृत्ति समस्से णं भगवओ महावीरस्स तित्यंसि सत्त पवयण - निण्हवा पन्नता - १. बहुरया, २. जीवपएसिया, ३. अब्बत्तिया ४ सामुच्छेइया, ५. दोकिरिया, ६. तेरासिया, ७. अबद्धिया । एएसिणं सत्तण्हं पवयणनिहगाणं सत्त धम्मायरिया होत्था - जमाली, तोसगुत्ते, आसाढे, आसमित्ते, गंगे, छल्लुए गोट्टामाहिले । एएसिणं सत्तण्हं पवयणनिण्ह Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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