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________________ ५१२ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन २ ___ कौन-कौन से निह्नववाद कब-कब प्रवृत्त हुए, इस सम्बन्ध में वहां कहा गया है : "भगवान् महावीर के केवलज्ञान उत्पन्न होने के चवदह वर्ष बाद बहुरतवाद, सोलह वर्ष बाद जीवप्रदेशवाद, एकसौ चवदह वर्ष बाद अव्यक्तवाद, दोसौ बीस वर्ष बाद सामुच्छेदवाद, दोसौ अट्ठाईस वर्ष बाद जि.यवाद, पांचसी चवालीस वर्ष बाद पैराशिकवाद, पांचसौ चौरासी वर्ष बाद अबद्धिकवाद तथा छःसौ नौ वर्ष बाद बोटिकवाद उत्पन्न हुआ।1 বীন্ধি নিং,নৰ श्वेताम्बरों के अनुसार सात के अतिरिक्त जो एक और निह्नव हुआ, वह बोटिक था । पहले इंगित किया ही गया है, उक्त सात निह्नवों तथा बोटिक निह्नव में मुख्य भेद यह था जमालिप्रभवानां निह नवानामुत्पत्ति स्थानं श्रावस्ती, तिष्यगुप्तप्रभवानामृषभपुरम्, अध्यक्तमतानां श्वेतविका, सामुच्छेदानां मिथिला, द्वे क्रियाणामुल्लुकातीरम्, नैराशिकानां पुरमन्तरंजिका गोष्ठामाहिलस्य दशपुरम् सर्वापलापिनां बोटिकानां रथवीरपुरम्, वक्ष्यमाणानामपि बोटिकानामुत्पत्तिस्थानाभिधानं लाघवार्थम् । एतानि यथाक्रमं निह नवानामुत्पत्तिस्थानानि-नगराणि । -आवश्यक-नियुक्ति, मलयगिरि-वृत्ति १. चउबस सोलस वासा, चउक्स वीसुत्तरा य दुण्णि सया। - अट्ठावीसा य दुवे, पंचेव सया य चोआला ॥ ७८२ ॥ :: पंचसया चुलसीआ, छच्चेव सया नवुत्तरा इंति । नाणुप्पत्तीइ दुवे उप्पन्ना निव्वुए सेसा ॥ ७८३ ॥ भगवतो वर्द्धमानस्वामिनो ज्ञानोत्पत्तेरारभ्य यावच्चतुर्दशवर्षाणि अतिक्रान्तानि ताववत्रान्तरे बहुरताः समुत्पेदिरे, एवं प्रतिपदमक्षर गमनिका कार्या । भावार्थस्स्वयम्---- ज्ञानोत्पत्तेरेवारभ्य षोडशवर्षात्यये जीवप्रदेशाः समुत्पन्नाः, भगवति निवृते चतुर्दशोत्तरवर्षशतातिक्रमे अव्यक्तमता, विंशत्युत्तर द्विवर्षशतातिक्रमे सामुच्छेदाः, अष्टाविंशत्युत्तरद्विवर्षशतातित्यये व क्रियाः, चतुश्चत्वारिंशदधिक पंचवर्षशतात्यये राशिकाः चतुरक्षीत्यधिकपंचवर्षशतात्यये अबद्धिकाः, षट् चैव शतानि नवोत्तराणि बोटिकानाम् । 'नाणुप्पत्तीई' त्यादि, आधौ द्वौ निह नवी जमालितिष्य गुप्ताभिधौ यथाक्रम शानोत्पतेरारभ्य चतुर्दशषोडशवर्षातिक्रमे जातौ शेषास्त्वव्यक्तादयो निर्वृते भगवति यथोक्तकालातिक्रमे इति। -आवश्यक नियुक्ति, मलयगिरि वृत्ति ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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