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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड:
प्रयोग हुआ है, पर, उनका संकेत जैसा कर दिया गया है, स्पष्ट और विशद वर्णन नहीं मिलता । ऐसी मान्यता है कि नियुक्तियों की रचना का आधार गुरु- परम्परा - प्राप्त पूर्वमूलक वाङ् मय रहा है ।
श्रम वृन्द गमिक विषयों को सहजतया मुखाग्र रख सकें, नियुक्तियों की रचना के पीछे सम्भवतः यह भी एक हेतु रहा हो । ये आर्या छन्द में रचित गाथाओं में हैं; इसलिए इन्हें कण्ठस्थ रखने में अपेक्षाकृत अधिक सुगमता रहती हैं । कथाएं, दृष्टान्त आदि का भी संक्षेप में उल्लेख या संकेत किया हुआ है । उससे वे मूल रूप में उपदेष्टा श्रमणों के ध्यान में आ जाते हैं, जिनसे वे उन्हें विस्तार से व्याख्यात कर सकते हैं ।
ऐतिहासिकता
व्याख्या - साहित्य में नियुक्तियां सर्वाधिक प्राचीन हैं । पिण्ड - नियुक्ति तथा औघनियुक्ति की गणना श्रागमों के रूप में की गयी है । इससे यह स्पष्ट होता है कि पांचवीं ई० शती में वलभी में हुई आगम-वाचना, जिसमें अन्ततः आगमों का संकलन एवं निर्धारण हुआ, उससे पूर्व ही नियुक्तियों की रचना आरम्भ हो गयी थी । प्रमुख नैयायिक द्वादशारनय-चन्द्र के रचयिता प्राचार्य मल्लवादी ने अपनी रचना में नियुक्ति-गाथा उद्धृत की है, जिससे मल्लवादी से पूर्व नियुक्तियों का रचा जाना प्रमाणित होता है । मल्लवादी का समय विक्रम का पंचम शतक माना है |
नियुक्तियां रचनाकार
१. आचारांग, २. सूत्रकृतांग, ३, सूर्यप्रज्ञप्ति, ४. व्यवहार, ५. कल्प, ६. दशाश्रुतस्कन्ध, ७. उत्तराध्ययन, ८. आवश्यक, ९. दशवैकालिक, १०. ऋषिभाषित; इन दश सूत्रों पर नियुक्तियों की रचना की गयी है । सूर्यप्रज्ञप्ति तथा ऋषिभाषित की नियुक्तियां प्राप्त हैं। नियुक्तिकार के रूप में आचार्य भद्रबाहु का नाम प्रसिद्ध है। पर, श्रुतकेवली ( अन्तिम चतुर्दश पूर्वधर) आचार्य भद्रबाहु, जिन्होंने छेद - सूत्रों की रचना की और नियुक्तिकार प्राचार्य भद्रबाहु एक नहीं हैं । एक बहुत बड़ी कठिनाई यह आती है कि अनेक नागमों पर रचित नियुक्ति तथा भाष्य की गाथाएं स्थान-स्थान पर एक-दूसरे से इतनी मिल गयी हैं कि उन्हें पृथक् कर पाना दुःशक्य है । चूरिंणकार भी वैसा नहीं कर पाये ।
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