________________
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
इस आगम की रचना एक ही समय में नहीं हुई । ऐसा प्रतीत होता है कि समय-समय पर इसमें कुछ जुड़ता रहा है। इस प्रकार संकलित होता हुआ यह एक परिपूर्ण आगम के रूप में अस्तित्व में आता है । पर, ऐसा कब-कब हुआ, किन-किन के द्वारा हुआ, इस विषय में अभी कोई भी अकाट्य प्रमाण उपस्थित नहीं किया जा सकता। सार रूप में इस प्रकार कहना युक्तियुक्त लगता है कि इसकी रचना में अनेक तत्व-ज्ञानियों और महापुरुषों का योगदान है, जो सम्भवतः किसी एक ही काल के नहीं थे।
विषय-वस्तु
जीवन की अशाश्वतता, दुष्ट कर्मों के दूषित परिणाम, अज्ञानी का ध्येय, शून्य जीवन, भोगासक्ति का कलुषित विपाक, भोगी की बकरे के साथ तुलना, अधम गति में जाने वाले जीव के विशिष्ट लक्षण, मानव-जीवन की दुर्लभता, धर्म-श्रुति, श्रद्धा, संयमोन्मुखता का महत्व, गृही साधक की योग्यता-संयम का स्वरूप, सदाचरण-सम्पन्न व्यक्ति की गति, देवगति के सुख, ज्ञानी एवं अज्ञानी के लक्षण, ज्ञान का सुन्दर परिणाम, जातिवाद की हेयप्ता, जातिवाद का दुष्परिणाम, आदर्श भिक्षु, ब्रह्मचर्य-समाधि के स्थान, पापी श्रमण, श्रमणजीवन को दूषित करने वाले सूक्ष्म दोष, आठ प्रकार की प्रवचन-माताएं, सच्चा यज्ञ, याजक, यज्ञाग्नि आदि का स्वरूप, साधना-निरत भिक्षु की दिनचर्या, सम्यक्त्व-पराक्रम का स्वरूप, आत्म-विकास का पथ, तपश्चर्या के भिन्न-भिन्न प्रयोग, चरण-विधि-ग्राह्य, परिहेय, उपेक्ष्य प्रादि का विवेक, प्रमाद-स्थान-तृष्णा, मोह, क्रोध, राग, द्वेष आदि का मूल, कर्म-विस्तार, लेश्या, अनासक्तता, लोक-पदार्थ, निष्फल मृत्यु, सफल मृत्यु प्रभृति अनेक विषयों का विभिन्न अध्ययनों में बड़ा मार्मिक एवं तलस्पर्शी व्याख्यान-विश्लेषण हमा है।
ष्टान्त : कथानक
दूसरा महत्वपूर्ण अंश है, इसका रूपक, दृष्टान्त व कथानक-भाग । इसके माध्यम से तत्व-ज्ञान और आचार-धर्म का विशद विवेचन हुआ है, जिसका अनेक दृष्टियों से बड़ा महत्व है । पच्चीसवां अध्ययन इसका उदाहरण है, जहां अध्यात्म-यज्ञ, उसके अंगोपांगों एवं उपकरणों का बहुत हृदयस्पर्शी विवेचन है। इस प्रकार के अनेक प्रकरण हैं, जहां उपमानों तथा रूपकों का ऐसा सुन्दर और सहज सन्निवेश है कि विवेच्य विषय पाठक के मागे साक्षात् उपस्थित हो जाता है। नवम अध्ययन में इन्द्र और राजर्षि नमि का प्रकरण बनासक्त तितिक्ष एवं मुमुक्षु जीवन का एक सजीव तथा साधारण चित्र प्रस्तुत करता है।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org