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________________ भाषा और साहित्य | आर्ष (अब मागधी) प्राकृत और आगम वाङ्मय । ४६७ পানা সীকানি' । অামাখ भद्रबाहुना प्रोक्तानि भद्रबाहवानि उत्तराध्ययनानि- इस प्रकार का भी उल्लेख प्राप्त होता है, जिससे कुछ विद्वान् सोचते हैं कि उत्तराध्ययन के रचयिता आचार्य भद्रबाहु हैं । सबसे पहले विचारणीय यह है कि उत्तराध्ययन की नियुक्ति के लेखक भद्रबाहु हैं । जैसा कि पूर्व सूचित किया गया है, वे उत्तराध्ययन की रचना में अंग-प्रभवता, जिन-भाषितता, प्रत्येक बुद्ध-प्रतिपादितता, संवाद-निष्पन्नता आदि कई प्रकार के उपपादक हेतुओं का आख्यान करते हैं। उपर्युक्त कथन में भद्रबाहुना के साथ प्रोक्तानि क्रिया-पद प्रयुक्त हुआ है। प्रोक्तानि का अर्थ रचितानि नहीं होता । प्रकर्षेण उक्तानि-प्रोक्तानि के अनुसार उसका अर्थ विशेष रूप से व्याख्यात, विवेचित या अध्यापित होता है । शाकटायन और सिद्धहैमशब्दानुशासन' आदि व्याकरणों में यही आशय स्पष्ट किया गया है। इस विवेचन के अनुसार आचार्य भद्रबाहु उसराध्ययन के प्रकृष्ट व्याख्याता, प्रवक्ता या प्राध्यपयिता हो सकते हैं, रचयिता नहीं। कुछ विद्वान् ऐसा मानते हैं, उत्तराध्ययन के पूर्वाद्ध के अठारह अध्ययन प्राचीन हैं तथा उत्तरार्द्ध के अठारह अध्ययन अर्वाचीन । इसके लिए भी कोई प्रमाण-भूत या इत्थंभूत भेद रेखा मूलक तथ्य या ठोस आधार नहीं मिलते। বিমখ : অসী समीक्षात्मक दृष्टि से चिन्तन करें, तो यह समग्र आगम भगवान् महावीर द्वारा ही भाषित हुआ हो या किसी एक व्यक्ति ने इसकी रचना की हो, ऐसा कम सम्भव प्रतीत होता है। कारण स्पष्ट है, यहां सर्वत्र एक जैसी भाषा का प्रयोग नहीं हुआ है। श्रद्धमागधी प्राकृत का जहां अत्यन्त प्राचीन रूप इसमें सुरक्षित है, वहां यत्र-तत्र भाषा के अर्वाचीन रूपात्मक प्रयोग भी दृष्टिगोचर होते हैं। इससे यह अनुमान करना सहज हो जाता है कि १. ट : प्रोक्ते ३।१।६९ -शाकटायन २. तेन प्रोते ६।३।१० !... -सिवहमशबानशासपन Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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