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________________ भाषा और साहित्य ] आर्ष (अर्द्धमागधी) प्राकृत और आगम वाङमय [ ४३७ विषय-वस्तु जम्बूद्वीपस्थ भरत क्षेत्र आदि का इस उपांग में विस्तृत वर्णन है। उनके सन्दर्भ में अनेक दुर्गम स्थल, पहाड़, नदी, गुफा, जंगल, आदि की चर्चा है । ___ जैन काल-चक्र-अवसर्पिणी-सुषम-सुषमा, सुषमा, सुषम-दुःषमा, दुःषम-सुषमा दुःषमा, दुःषम-दुःषमा तथा उत्सर्पिणी-दुःषम-दुःषमा, दुःषमा, दुःषम-सुषमा, सुषम-दुःषमा, सुषमा, सुषम-सुषमा का विस्तार से वर्णन है। उस सन्दर्भ में चौदह कुलकर आदि, तीर्थ कर ऋषभ,बहत्तर कलाएं, स्त्रियों के लिए विशेषतः चौसठ कलाए तथा अनेक शिल्प आदि की चर्चा है। इस कोटि का और भी महत्वपूर्ण वर्णन है। जैन भूगोल तथा प्रागितिहासकालीन भात के अध्ययन की दृष्टि से जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का विशेष महत्व है। ७. चन्दपन्नत्ति (चन्द्रप्रज्ञप्ति) स्थामांग में उल्लेख स्थानांग सूत्र' में सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति तथा द्वीपसागर प्रजप्ति के साथ चन्द्रप्राप्ति का भी अंगबाह्य के रूप में उल्लेख हुआ है। इससे स्पष्ट है कि सूर्यप्रज्ञप्ति तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति दोनों प्राचीन ग्रन्थ हैं। दोनों कभी पृथक्-पृथक् ग्रन्थ थे, दोनों के अपनेअपने विषय थे। वर्तमान संस्करस : एक प्रश्न ___ वर्तमान में चन्द्रप्रज्ञप्ति का जो संस्करण प्राप्त है, वह सूर्यप्रज्ञप्ति से सर्वथा-अक्षरशः मिलता है। भेद है तो केवल मंगलाचरण तथा ग्रन्थ में विवक्षित बीस प्राभृतों का संक्षेप में वर्णन करने वाली अठारह गाथाओं का। चन्द्रप्रज्ञप्ति के प्रारम्भ में ये गाथाए हैं । तत्पश्चात् क्रम-निर्दिष्ट विषय प्रारम्भ होता है। सूर्यप्रज्ञप्ति में ये गाथाएं नहीं हैं अर्थात् मंगलाचरण तथा विवक्षित-विषय-सूचन के बिना ही ग्रन्थ प्रारम्भ होता है, जो आद्योपान्त चन्द्रप्रज्ञप्ति जैसा है। वास्त में यदि ये दो ग्रन्थ हैं, तो ऐसा क्यों ? यह एक प्रश्न है, जिसका अनेक प्रकार से समाधान किया जाता है। १. चत्तारि पण्णतीओ अंगबाहिरियाओ पण्णताओ, तं जहा-चन्दपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, जम्बूद्दीवपण्णत्ती, दीवसागरपण्णती । -स्थानांग सूत्र, स्थान ४, १.४७ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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