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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
] खण्ड २
उस मत - द्वैध का
कथानक का मुख्य
सूत्र के प्रधान पात्र या कथानायक के सम्बन्ध में ऐकमत्य नहीं है । आधार यह नाम भी बना है । परम्परा से राजा परदेशी इस सूत्र के पात्र है, पर, डा० विण्टरनित्ज के मतानुसार मूलतः इस प्रागम में कौशल के इतिहास प्रसिद्ध राजा प्रसेनजित् की कथा थी । बाद में उसे राजा परदेशी से जोड़ने का प्रयत्न हुआ ।
रायपसेरीअ तथा रायपसेरगइय शब्दों का सम्बन्ध तो राजा प्रसेनजित् से जुड़ता है, पर, वर्तमान में प्राप्त कथानक का सम्बन्ध ऐतिहासिक दृष्टि से राजा प्रसेनजित् से जोड़ना सम्भव प्रतीत नहीं होता । यह सारा कथा -क्रम कैसे परिवर्तित हुआ, क्या-क्या स्थितियाँ उत्पन्न हुईं, कुछ कहा जाना शक्य नहीं है । इसलिए जब तक परिपुष्ट प्रमाण न मिलें, तब तक केवल नाम - सांगत्य कोई ठोस आधार नहीं माना जा सकता ।
३. जीवाजीवाभिगम
उपांग के नाम से हो स्पष्ट है, इसमें जीव, प्रजीव, उनके भेद प्रभेद आदि का विस्तृत वर्णन है । संक्षेप में इसे जीवाभिगम भी कहा जाता है । परम्परया ऐसा माना जाता है कि कभी इसमें बोस विभाग थे, परन्तु, वर्तमान में जो संस्करण प्राप्त है, उसमें केवल नौ प्रतिपतियां 1 ( प्रकरण) मिलती हैं, जो २७२ सूत्रों में विभक्त हैं। हो सकता है, वे बीस विभाग या उनका महत्वपूर्ण भाग या लुप्त हो जाने से बचा हुआ भाग इन नौ प्रतिपत्तियों में विभक्त कर संकलन की दृष्टि से नये रूप में प्रस्तुत कर दिया गया हो। ये सब कल्पनाएं और अनुमान हैं, जिनसे अधिक वितर्करणा करने के साधन आज उपलब्ध नहीं हैं ।
गणधर गौतम के प्रश्न श्रौर भगवान् महावीर के उत्तर की श्रृंखला में इस ग्रन्थ में रूपी, अरूपी, सिद्ध, संसारी, स्त्री, पुरुष व नपुंसक वेद, सातों नरकों के प्रतर तिर्यंच भुवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क देव, जम्बू द्वीप, लवण समुद्र, उत्तर कुरु, नीलवन्तादि द्रह, धातकी खण्ड, कालोदधि, मानुषोत्तर पर्वत, मनुष्य लोक, अन्यान्य द्वीप, समुद्र आदि का वर्णन है । कहीं-कहीं वर्णनों का विस्तार हुआ हैं । प्रसंगोपात्ततया इसमें लोकोत्सव, यान, अलंकार, उद्यान, वापिका, सरोवर, भवन, सिंहासन मिष्टान्न, मदिरा, धातु श्रादि की भी चर्चा है । प्राचीन भारत के सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों के अध्ययन की eft से इसका महत्व है ।
१. ज्ञान, निश्चिति, अवाप्ति ।
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